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चंग धीरे रे बजावन वालो अमर रहिजे रे, होली आई रे - Sabguru News
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चंग धीरे रे बजावन वालो अमर रहिजे रे, होली आई रे

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चंग धीरे रे बजावन वालो अमर रहिजे रे, होली आई रे

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सात रंगों मे रंगी बंसत रूपी सुन्दरी फाल्गुन की मस्ती मे मस्त होकर नाच रही है, गा रही है और प्रेम प्रीति का संदेश दे रही है अपार जन सैलाब को प्रकृति के रंग मे रंगने के लिए उत्तेजित कर रही है।

प्रकृति के इस बदले मिजाज का आमजन खूब आनंद ले रहे हैं। धीरे-धीरे मीठी हवाएं चल कर शरीर को स्पर्श कर मीठा अहसास दे रही है। धीमी हवा पेड़ों पर थाप दे रही हैं ओर उससे निकलने वाली आवाज फाल्गुन में बजे चंग का अहसास दिला रही है।

अभी सर्द ऋतु बदली है अतः धीमी हवाए ही शरीर को आनंदित कर रही है तथा उसी गति से हाथ पांव भी धीमा ओर मीठा नृत्य कर रहे हैं।

हर्ष, उल्लास व उमंग सम्पूर्ण ब्रह्मांड मे छाया हुआ है और क्या मानव, देव ओर दानव भी फाल्गुन की मस्ती मे नाच गा कर प्रसन्न हो रहे हैं।

द्वापर में श्रीकृष्ण एक महान योगी थे और वे स्वयं आमजन को अपनी बांसुरी की धुन पर समस्त ग्वाल बाल व गोपियो को सदा ही रिझाते थे और फाल्गुन मास मे गोपियो को सूर्य के सात रंगों से रंग सात तरह की ऊर्जा उन के शरीर में बढा कर प्रेम प्रीति बढा रास रचाते थे।

वास्तव में परमात्मा का प्रकृति के लिए यह समर्पण फाल्गुन के चंग की आवाज को अमर बना जाता है। ऋतु का बदलता समय सर्द से ग्रीष्म में आने का काल समायोजन शरीर को धीमे-धीमे गरम करता है।

अतः बंसत रूपी नायिका धीरे-धीरे चंग बजाने वाले को अमर रहने की दुहाई देती है ओर कहती है अभी शरीर में ऊर्जा की गति बढी नहीं है इसलिए हे हवा तू अभी धीमी ही चल ओर वृक्ष रूपी चंग को धीरे-धीरे ही बजा ताकि हमारे आनंद में बाधा न आए।

देवी भागवत पुराण में एक कथा का उल्लेख है कि फाल्गुन मास मे श्रीकृष्ण व राधा सभी देवी-देवता के साथ रास मण्डल में बैठे थे। सर्व प्रथम देवी सरस्वती ने वीणा के मधुर स्वरों पर फाग का गायन सुना सभी को आनन्दित कर दिया।

इसके बाद ब्रह्माजी के उत्साहित करने पर भगवान् शिव ने भी मधुर वीणा पर गाना शुरू कर दिया। वे इतने मस्त हो गए कि मध्यम स्वर को भूलकर सप्तम स्वर मे गाने लग गए। इससे प्रकृति की ऊर्जा का संतुलन बिगड गया और सारे देव अपनी सुध बुध भूल गए और भूत की तरह हो गए।

राधा ओर कृष्ण जहां बैठे थे वहा जल स्तर एक दम बढ गया और वे दोनों जल में विलीन हो गए। सभी का यह हाल देख ब्रह्माजी ने शिव को वीणा बजाने से रोका।

वीणा के रूकते ही सभी देवों को होश आया तथा वहा पर राधा ओर कृष्ण को न देख सभी रोने व प्रार्थना करने लगे।

उसी समय एक आकाशवाणी हुई ओर श्रीकृष्ण बोले हे देवो अब एक शर्त पर ही में सामने प्रकट हो सकता हूं कि जब भगवान् शिव मुक्ति प्रदायनी तंत्रों के ग्रन्थ को लिखे तथा हाथ में जल लेकर शपथ खाएं।

समस्त देवो व ब्रह्मा के कहने पर भगवान् शिव ने वचनों के कारण “मुक्ति के मर्ग पर चले वाले आगम’ तन्त्र को लिखा तब श्रीकृष्ण, एक दम प्रसन्न हो गए ओर प्रकट हुए और शिव को पृथ्वी के कल्याण के लिए इस जगत छोड़कर लुप्त हो गए।

प्रकृति इस घटना क्रम से संदेश देती है कि बंसत के बाद फाल्गुन मास मे ऊर्जा के संक्रमण काल मे नीचे व मध्यम स्वर पर ही गायन कर अनुकूल ऊर्जा का संचालन शरीर मे करना चाहिए तथा शरीर पर सात रंगों से अबीर गुलाल लगा धीमी मोज मस्ती कर नृत्य का आनद लेना चाहिए।

सौजन्य : भंवरलाल