सबगुरु न्यूज-सिरोही। जेएनयू का मामला तो अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। इसकी तुलना सिरोही नगर परिषद और इसकी स्वायत्ता की बात करने वाले लोगों से नहीं कर सकते हैं, लेकिन स्वायत्ता की परिभाषा के संदर्भ में यह तुलना करनी लाजिमी हो जाती है।
सिरोही सभापति ने जिला कलक्टर को जो पत्र लिखा उसमें नगर परिषद की स्वायत्ता की बात की है। उसी तरह जिस तरह जैसे जेएनयू प्रकरण के बाद कुछ लोग जेएनयू की स्वायत्ता की बात कर रहे थे। स्वायत्ता का मतलब उस समय भी स्वतंत्रता से लगाने की भूल कर रहे थे और आज सिरोही सभापति भी।
स्वायत्ता का अर्थ सरकार की ओर से किसी क्षेत्र विशेष की विशिष्टता को बनाए रखने के लिए दिए गए सीमित अधिकारों से है जो किसी भी सूरत में संबंधित राज्य या देश की सरकार के बनाए हुए नियमों और कानूनों के उल्लंघन का अधिकार नहीं देता है। जिला कलक्टर को लिखे गए पत्र में स्वायत्ता का जिक्र करने के बाद यह माना जा सकता है कि सिरोही सभापति ताराराम माली स्वायत्ता के अर्थ से भली भांति परिचित हैं।
अब लाखेराव तालाब की खुदाई से स्वायत्ता से संबध पर आते हैं। यह काम मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत हो रहा था। यानी की सरकार का आदेश। सरकार यानी खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे। जिसमें जल संरक्षण का कार्य जन सहयोग से किया जाना था न कि सरकार के पैसे से।
सभापति और उनकी ओर से प्रेस नोट में उल्लेखित पार्षद सिरोही के लाखेराव तालाब के विकास की जो बात कर रहे हैं, उसमें वह अपना खुदका कमाया हुआ पैसा लगाएंगे या फिर सरकारी खजाने से नगर परिषद से मिलने वाले मद से। यदि वह और उनका समर्थन करने वाले पार्षद ने अपने प्रेस नोट में लाखेराव तालाब के जिस विकास की बात की है वह अपनी कमाई हुई राशि से करेंगे तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के आदेशों की पालना करेंगे, लेकिन यदि यह लोग इसके विकास का दम सरकार की ओर से प्राप्त पैसे से करने की सोच रहे हैं तो इसका अर्थ यह है कि स्वायत्ता का अर्थ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और राज्य सरकार के बनाए नियम कायदों को दरकिनार करने से मान चुके हैं।
क्योंकि सभापति के जिस कथित दुव्र्यवहार से दानदाताओं को लाखेराव को काम करने से रोका है वह कार्य जल संरक्षण का था न कि सौंदर्यीकरण का। यदि लाखेराव तालाब में जल संरक्षण का कार्य नगर परिषद अपने पैसे से करवाती है तब भी और नहीं करवाती तब भी यही सार्वजनिक अर्थ लगाया जाएगा कि सभापति और उनकी ओर से उल्लेखित पार्षद वसुंधरा राजे विरोध पर उतारू हो चुके हैं। इनका अपनी सरकार के बनाए नियमों और कायदों से कोई इत्तेफाक नहीं है।
अब आते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर। सभापति और भाजपा पार्षदों ने जिस काम को स्वायत्ता के नाम पर रुकवाया है उसमें एक कार्यकारी सहयोगी सेवा भारती भी थी। सेवा भारती यानी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। यह वही संगठन है जिसने जेएनयू प्रकरण में स्वायत्ता की व्याख्या की थी। सभापति ने अपने प्रेसनोट में लिखा है कि कुछ लोगों ने समिति सदस्य बन जल संरक्षण की आड में ओछी मानसिकता का परिचय देकर खुदाई कार्य रुकवाने का मिथ्या झूठा व भ्रामक आरोप लगाकर व्यक्तिगत छवि को निरन्तर नुकसान पहुंचाया जा रहा है एवं भ्रामक प्रचार कर नगर परिषद के बारे में जनता को गुमराह किया जा रहा है।
इस समिति में सेवा भारती के लोग भी हैं यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी हैं। ये सब जानते हुए भी सिरोही सभापति क्या यह कहना चाह रहे है कि आरएसएस और उससे जुडे बौद्धिक लोग इतने विवेकहीन है कि ऐसे लोगों के साथ काम करते है जो ओछी मानसिकता वाले हैं। तो क्या सिरोही नगर परिषद का भाजपा बोर्ड और सभापति के साथ दिनभर सलाहकार के रूप में साथ रहने वाले भाजपाई स्वायत्ता के नाम पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विरोध पर भी उतारू हो चुकी है।
इस सबमें नगर परिषद के बोर्ड में शामिल भाजपाइयों के साथ-साथ चार और लोगों को भी अपनी भूमिका स्पष्ट करना जरूरी है। सभापति की स्वायत्ता की परिभाषा से क्या प्रभारी मंत्री ओटाराम देवासी, भाजपा जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चैधरी भी इत्तेफाक रखते हैं। यह सवाल सिरोही ब्लाॅक अध्यक्ष सुरेश सगरवंशी और भाजयुमो जिलाध्यक्ष हेमंत पुरोहित से भी पूछा जाना इसलिए जरूरी है कि सार्वजनिक रूप से सबसे पहले इन्हीं ने नगर परिषद के अधिकार की बात करते हुए सभापति को अस्तित्व में नहीं आई एक समिति का हिस्सा नहीं बनाए जाने पर आपत्ति जताई थी और आरएसएस के कैलाश जोशी के इस कार्य मे क्षेत्रीय प्रमुख बाबुलाल जी की सहमति की बात कहने पर भी इस विवाड क़ॉ थामने की बजाय इसे व्हाट्स एप पर जारी रखे हुए थे।
यदि इनकी स्वायत्ता की परिभाषा सभापति के जिला कलक्टर को लिखी परिभाषा से मेल खाती है तो क्या वह मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में जल संरक्षण के लिए सरकार का धन खर्च करने के इच्छुक हैं। इस बात के इच्छुक हैं तो क्या वह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के उद्देश्यों के विरोधी है।
यदि यह लोग समिति में शामिल ओछी मानसिकता वाले लोगों में सेवा भारती के लोगों को भी शामिल मानते हैं तो क्या वाकई लोगों को क्या यह लोग यह भी मानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभापति की व्यक्तिगत छवि को नुकसान पहुंचा रही है। तो क्या ऐसे में आरएसएस और उसके कार्यों पर विश्वास करना चाहिए।
यह बात सिरोही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों को भी गौर करनी चाहिए कि सभापति के प्रेसनोट में उल्लेखित ओछी मानसिकता में वाले समिति सदस्य वह भी हैं क्या। यदि वह भी हैं तो आखिर किस तरह से लोग संघ की विचारधारा से खुद को जोडकर गौरवांवित महसूस कर सकेंगे। लोगों में अपने ही लोगों द्वारा अंगुली उठाए जाने के बाद यह वो यक्ष प्रश्न हैं जिसका खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को देने हैं ।
यदि इनमें से किसी भी बात से यह लोग इत्तेफाक नहीं रखते तो सभापति के आसपास से उन सलाहकारो को हटाने में जुट जाना चाहिए जो सभापति के माध्यम से इस तरह के पत्र और प्रेस नोट जारी करवाकर जनता में वसुंधरा राजे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति अविश्वास पैदा करवाने वाले शब्दों को जानबूझकर या अज्ञानता में डलवाते हैं। क्योंकि आगामी चुनावों में भाजपा में आरएसएस में विश्वास ही सत्ता में पुनर्वापसी का रास्ता प्रशस्त करेंगी और उसके लिए नेताओं की बजाय जनता और जनहित को प्राथमिकता देना ज्यादा जरूरी है। वैसे लाखेराव तालाब के सौंदर्यीकरण में जिस आशापुरा टेकरी का नाम लिया गया है उसके संदर्भ में भी स्थिति स्पष्ट होना जरूरी है।