नई दिल्ली। चैत्र नवरात्र का छठा और मां कात्यायनी का दिन है। जगह-जगह मंदिरों में मां दुर्गाजी के छठे स्वरूप कात्यायनी देवी की पूजा-अर्चना के लिए भीड़ दिखाई दे रही है।
मंदिरों में देवी मां के भक्त भजन-कीर्तन कर रहे हैं। यहां के अनेकों मंदिरों में पिछले पांच दिनों से मां दुर्गा का जाप और दुर्गा सप्तशती का पाठ चल रहा है। ऐसा विश्वास है कि कात्यायनी देवी की उपासना करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चार पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के छठे रुप का नाम कात्यायनी पड़ा। इनका रंग स्वर्ण की भांति अत्यंत चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है तथा इनका वाहन सिंह है।
शास्त्रों में ऐसा उल्लेखित है कि महर्षि कात्यायन ने सर्वगुण संपन्न पुत्री पाने के उद्देश्य से भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की और इन्हें पुत्री के रूप में कात्यायनी की प्राप्ति हुई। क्योंकि ये ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
संभवत: इसलिए ब्रज प्रदेश की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए यमुना के तट पर इन्हीं मां कात्यायनी की पूजा की थी। इनके पूजन में मधु अर्थात् शहद का विशेष महत्व बताया गया है, इसलिए इन्हें मधु का भोग अवश्य लगाना चाहिए।
मां कात्यायनी की पूजा और अराधना करने वाले उपासक को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता और वह सब तरह के पापों से मुक्त हो जाता है। इन्हें शोध की देवी भी कहा जाता है। इसलिए उच्च शिक्षा का अध्ययन करने वालों को इनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। इनकी पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से की जाती है।