हँसना ना केवल मनोरंजन का साधन हैं बल्कि हंसने से हमारे शरीर में खून भी बढ़ता हैं और यह शरीर में थेरपी का भी काम करती हैं. हंसने से दिन भी खुश रहता हैं और पोस्टिव एनर्जी भी मिलती हैं इसलिए जब भी मौका मिले खुलकर हंसना चाहिए।
खुश रहना चाहता हूं, लेकिन रह नहीं पाता ?
अमीर हो या गरीब, बच्चा हो या जवान सभी खुश रहना चाहते हैं, लेकिन खुशी के लिए केवल सोचने भर से काम नहीं चलता। उसके लिए मन को समझने व उसको अपने काबू में करने की जरूरत है। इसके लिए आप मन को दिनभर के कामों में लीन करें और जिस समय जो भी काम आप कर रहे है, उस काम को मस्ती के साथ करना शुरू कर दें और चेहरे पर मुस्कराहट बनाए रखें।
जब भी मौका मिले खिल-खिलाकर हंस दें। जो भी काम कर रहे हैं, उसको जब तब मस्ती के साथ नहीं करोगे, तो खुश नहीं रह सकते। कई बार आप कोशिश तो करते होंगे लेकिन चंचल मन खुशी को भुलाकर परेशानी में ही ले आता होगा। जिस समय मन खुशी से हटाए उसी समय मन में खुशी भर दो। मन का काम है हमें इधर-उधर दौड़ाकर भारी करना और हमारा काम है मन को खुशी देकर उसको हल्का कर देना।
क्या विदेशों में रहने वाले लोग सुखी होते हैं?
सुख-दुख का ताल्लुक बाहर की चीजों से कम, आपके मन से ज्यादा होता है। यूं कहें कि सुख-दुख मन में ही होता है तो गलत नहीं। अमीर हों या गरीब, काले हों या गोरे, इस देश के हों या विदेश के, पढ़े-लिखे हों या अनपढ़, कपड़े अच्छे पहने हुए हों या खराब, झोपड़ी में रहते हों या महल में – बाहर का भेष, देश, भाषा, बर्ताव चाहे कैसा भी हो, लेकिन मन के विकार सबके एक जैसे ही होते है, उसमें बदलाव नहीं होता। ऐसा बिल्कुल नहीं कि महल में रहने वाला दुखी नहीं होता।
ऐसा भी नहीं कि विदेश में रहने वाला खुश ही है। यह सब तो मन का खेल है। ऐसा नहीं है कि जगह बदलने से खुशी मिलेगी। ऐसा भी नहीं है कि विदेश में रहने से सुख मिलेगा। जगह बदलने से बेहतर होगा कि मन में बदलाव ले आओ और मन को मजबूत करते जाओ। हर दिन को उत्सव की तरह मनाते हुए जीवन को खुश मन से जीना ही जीवन जीने की कला है।
मैं दूसरों से अपनी तुलना कर दुखी होता हूं?
अगर आधा गिलास भरा सामने रखा हो तो हमें खुद पर गौर करना चाहिए कि हमारी नजर उसके भरे हुए आधे हिस्से पर है या खाली हिस्से पर।
भरे हिस्से को देखेंगे तो संतुष्टी का भाव आएगा और खाली हिस्से को देखेंगे तो मन कहेगा आधा खाली क्यों है? खाली हिस्से पर ध्यान जाते ही भरे हिस्से वाला सुख भी चला जाता है। ऐसे ही जो हमारे पास है, उसमें संतुष्ट हैं तो सुखी हैं। हमारे दुख का बहुत बड़ा कारण दूसरों के सुखों से अपनी तुलना करना भी है, क्योंकि तुलना में दुख छिपा है।