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snubbed by mulayam singh, akhilesh yadav holds meeting with his supporters
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अब क्या करेंगे अखिलेश, समर्थकों का निर्णायक फैसले का दबाव!

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अब क्या करेंगे अखिलेश, समर्थकों का निर्णायक फैसले का दबाव!
snubbed by mulayam singh, akhilesh yadav holds meeting with his supporters
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लखनऊ। समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर मची कलह के बाद खुलकर विरोध का दौर शुरू होता दिख रहा है।

पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा बुधवार को जारी 325 प्रत्याशियों की सूची में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थकों का नाम नदारद होने के बाद गुरुवार को ही इसकी झलक राजधानी की सड़कों पर देखने को मिली।

राजधानी में राजभवन चैराहे के पास बहराइच की 288-कैसरगंज विधानसभा से अवधेश वर्मा की खुद को अखिलेश यादव समर्थक प्रत्याशी के रूप में बड़ी होर्डिंग नजर आई, जबकि इस सीट से पार्टी ने राम तेज यादव को टिकट दिया है।

खास बात यह है कि इस होर्डिंग में अवधेश वर्मा के साथ पार्टी मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद डिम्पल यादव की भी फोटो है, जबकि सहयोगी के रूप में 5 जिला पंचायत सदस्य, एक ब्लाॅक प्रमुख और एक पूर्व ब्लाॅक प्रमुख का भी नाम है। इसे अखिलेश समर्थकों की दबाव की रणनीति माना जा रहा है।

वहीं गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सरकारी आवास पर अपने समर्थक विधायक, मंत्री और युवा नेताओं के साथ बैठक की। इनमें से कई नेताओं ने कल मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की थी।

अखिलेश खासतौर से उन तीन मंत्रियों के टिकट काटे जाने से नाराज बताए जा रहे हैं, जो उनके करीबी रहे हैं। इनमें बाराबंकी के रामनगर से विधायक तथा कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह गोप, बलिया के रामगोविंद चौधरी तथा अयोध्या से विधायक तेज नारायण पाण्डेय उर्फ पवन पाण्डेय हैं।

टिकट कटने के बाद मंत्री अरविंद सिंह गोप, मंत्री रामगोविंद चैधरी, पवन पाण्डेय व कई विधायकों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, उनसे बदली परिस्थितियों पर चर्चा भी हुई। इस दौरान अखिलेश यादव समर्थकों ने पांच कालिदास मार्ग पर एकत्रित होकर उनके समर्थन में जमकर नारेबाजी भी की।

दरअसल अखिलेश न सिर्फ चाहते हैं कि उनके बताए प्रत्याशियों को टिकट मिले, बल्कि चुनाव में विकास के मुद्दे और अपनी क्लीन छवि को लेकर वह मैदान में जाएं। उन्होंने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही इसके खुले संकेत दे दिए थे। तब पश्चिमी यूपी के बाहुबली नेता डी.पी. यादव को पार्टी से निकालने के लिए उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। जिसमें उन्हें सफलता भी मिली।

इसके बाद कौमी एकता दल और मुख्तार अंसारी को लेकर भी उन्होंने ऐसे ही तेवर दिखाए। कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्य अभियुक्त मुख्तार अंसारी के राजनीतिक दल कौमी एकता दल के विलय का मामला भी हाल ही में उठा। शिवपाल यादव इस विलय के समर्थन में थे, लेकिन अखिलेश ने इसका विरोध किया। विलय तो नहीं हुआ, लेकिन मुख्तार अंसारी से शिवपाल की नजदीकियां सुर्खियां बटोरती रहती हैं।

बुधवार को जारी पहली ही लिस्ट में मुख्तार अंसारी के भाई सिगबतुल्लाह को गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से जगह मिलना अखिलेश के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसी तरह, अखिलेश के न चाहते हुए भी पार्टी में गायत्री प्रसाद प्रजापति का लगातार कद बढ़ा रहा है। उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाने के साथ अमेठी से उम्मीदवार बनाया गया है।

वहीं, कानपुर कैण्ट से अतीक अहमद, सीतापुर के बिसवां से रामपाल यादव सहित कई अन्य नामों को अखिलेश के विरोध के बावजूद टिकट दिया जाना, मुख्यमंत्री की हार माना जा रहा है। यहां तक कि कल उन्हें मुख्यमंत्री पद के तौर पर प्रोजेक्ट भी नहीं किया गया, जबकि इससे पहले शिवपाल यादव कई बार सार्वजनिक तौर पर उनके पक्ष में बोल चुके हैं।

ऐसे में अखिलेश अगर अब कोई निर्णय नहीं लेते हैं, तो उन्हें दोहरा नुकसान होगा। एक तो उनके समर्थक पूरी तरह से हताश होंगे और विधानसभा में पहुंचने की उनकी उम्मीद खत्म हो जाएगी, दूसरा जिन लोगों को अखिलेश खुद पसन्द नहीं करते हैं, उनके लिए वह चुनाव में जनता से वोट किस आधार पर मागेंगे?

इसके अलावा अगर किसी तरह अखिलेश विरोधी चुनाव जीतने में सफल होते हैं और सपा सरकार बनाने की स्थिति में होती है, तो भी विधायकों पर नियंत्रण परोक्ष रूप से शिवपाल यादव का रहेगा। जाहिर है अखिलेश ने पांच सालों में जितना दबाव नहीं झेला, उससे कई गुना ज्यादा दबाव इस समय उन पर है।

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