लखनऊ। प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने संसदीय कार्य मंत्री मो आजम खान का बचाव किया है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा कि आजम संसदीय राजनीति के कुशल महारथी, प्रखर वक्ता और विपक्ष की आलोचनाओं का तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने वालों में हैं। वह धर्म निरपेक्षता के प्रबल पक्षधर है।
राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि राजनीति विचारधारा के आधार पर कुछ आदर्शो और मूल्यों के लिए होती है। इसमें नीतियों को लेकर आलोचना प्रत्यालोचना की जाती है। लेकिन इधर राजनीति विचारधारा शून्य और चरित्र हनन की हो रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार की जनता में बढ़ती लोकप्रियता से कुछ तत्व इसकी छवि को बिगाड़ने में लग गए हैं। वे एक न एक मंत्री को निशाना बनाकर अपनी घटिया मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पहले कुछ लोगों ने खनन मंत्री प्रजापति को लेकर अनर्गल बयानबाजी की। अब मो आजम खान को आलोचना का शिकार बनाया जा रहा है। आजम कई दशकों से राजनीति में है और छात्र जीवन से अब तक उनका संघर्षपूर्ण जीवन रहा है। राजनीति में उनका जो स्थान बना है, वह उन्होने सघंर्षो से ही हासिल किया है। उनकी देशव्यापी ख्याति है।
आजम खान संसदीय राजनीति के कुशल महारथी, प्रखर वक्ता और विपक्ष की आलोचनाओं का तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने वालों में है। वे धर्म निरपेक्षता के प्रबल पक्षधर है। नेताजी (सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव) के नेतृत्व के लिए उनकी प्रतिबद्धता जगजाहिर है।
आजम की बेबाकी के सभी कायल हैं। उनके संसदीय कौशल की प्रशंसा विपक्ष के नेता विधान सभा में भी करते हैं। उनका वाक्चातुर्य विलक्षण है। उनकी प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना किसी भी तरह उचित नही। सार्वजनिक जीवन पारदर्शी होता है। आजम की जिदंगी खुली किताब है।
चौधरी ने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मो आजम पर भरोसा करते हैं। इलाहाबाद में कंुभ पर्व पर उनके प्रबंधन की प्रशंसा विदेशों तक में हुई है। उनका कहना है कि आजम खान के चरित्र हनन के पीछे वे ताकते हैं जो सांप्रदायिकता के सहारे अपनी राजनीति की रोटियाँ सेंकते हैं। जनता झूठ को कभी प्रश्रय नहीं दे सकती।
गौरतलब है कि बजट सत्र के दौरान आजम खान ने राजभवन पर एक विधेयक को लेकर सवाल उठाए थे और कुछ टिप्पणी किए थे। राज्यपाल राम नाईक इसे लेकर नाराज हैं। उन्होंने विधानसभा की पूरी कार्यवाही मंगवाकर देखी और आजम पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह संसदीय मंत्री के योग्य नहीं हैं। राज्यपाल के इस रुख के बाद सरकार और राजभवन के बीच पहले से ही चल रहे तल्ख रिश्तों में और भी तल्खी आ गई है।