लोकतंत्र की मजबूती के लिए प्राय: तीन आधार स्तंभों की चर्चा की जाती रही है। इसमें विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका हैं। हालांकि मीडिया भी वर्तमान में चौथा स्तंभ बनकर हमारे सामने है। लेकिन सबसे पहले लोकतंत्र के तीन स्तंभों का ही प्रचलन था।
संवैधानिक व्याख्या भी इन्हीं तीन स्तंभों का चित्र प्रस्तुत करती है। लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिए इन तीन स्तंभों का मजबूत होना अत्यंत ही जरूरी है। इसमें से कोई भी स्तंभ कमजोर रहेगा, तो निश्चित ही लोकतंत्र कमजोर होता जाएगा।
आज न्यायालयों में लंबित मामलों को लेकर एक बार फिर से सवाल खड़े हुए हैं। लाखों प्रकरण अदालतों में लंबित पड़े हैं। एक, दो, सैकड़ों और हजारों नहीं, बल्कि लाखों मामलों की सुनवाई करने के लिए हमारे देश में जज नहीं हैं। हजारों की संख्या में जजों की कमी के चलते न्याय प्रक्रिया में बाधा उपस्थित हो रही है।
छोटे और बड़े न्यायालयों में लंबित प्रकरणों की संख्या 38 लाख के पार पहुंच गई है। हालांकि राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी ने एक बार यह स्वीकार किया है कि देश की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। इतनी बड़ी संख्या में प्रकरणों का लंबित होना भी न्याय प्रक्रिया की धीमी रफ्तार को ही प्रदर्शित करता दिखाई देता है।
इन मुकदमों के शीघ्र निराकरण के लिए आवश्यक पहल होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने दिल्ली में मुख्यमंत्री और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के एक कार्यक्रम में भावुक होकर कहा कि देश में जजों की संख्या बढ़ाए जाने पर विचार किया जाना चाहिए। देश के विकास के लिए लंबित मामलों का हल निकाला जाना जाना बहुत जरूरी है।
न्यायपालिका में लंबित मामलों को लेकर केवल न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा करना सही नहीं है। किसी भी मामले को निपटाने के लिए जितने लोगों की आवश्यकता होगी, उस काम को अगर आधे लोग करें तो उसको निराकृत करने में समय लगेगा ही और फिर उस काम में दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती जाए तो यह समस्या एक दिन लाइलाज बन जाएगी। न्यायालयों के लंबित मामलों में कुछ इसी प्रकार की कहानी दिखाई दे रही है। एक दिन में जितने मामले निपटते हैं। उससे अधिक संख्या में प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं। इसमें ज्यों ज्यों उपचार किया मर्ज बढ़ता ही चला गया वाली उक्ति चरितार्थ होती दिखाई दे रही है।
हमारे देश में विद्वान न्यायाधीशों की कमी नहीं है। विश्व के कई देशों से अच्छी न्याय प्रणाली हमारे देश में बेहतर काम कर रही है। लेकिन आज हम विश्व के कई देशों से जजों की संख्या के मामले में काफी पीछे हैं। भारत में हर 10 लाख की आबादी पर 15 जज मौजूद हैं जो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा की तुलना में काफी कम है। विकास के मामले में यह देश भारत से कहीं आगे दिखाई देते हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि देश के विकास के लिए न्याय प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाया जाना अत्यंत ही जरूरी है।
हालांकि दिल्ली में हुए इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था को बनाए रखना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री ने न्यायपालिका को भरोसा दिलाया कि जजों की कमी दूर करने और लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के मामले में सरकार न्यायपालिका के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि लंबित मामलों को कम करने के लिए न्यायपालिका सरकार को जो भी सुझाव देगी उन पर पूरी संजीदगी से विचार किया जाएगा।
वर्तमान सरकार ने लंबित मुकदमों से निपटने के लिए सरकार ने पुराने और समय के साथ निष्प्रभावी हो चुके कानूनों को हटाने का काम किया है, जिससे बेवजह होने वाले कानूनी विवादों की संख्या कम की जा सके। उल्लेखनीय है कि देश में कई कानून ऐसे थे जिनके औचित्य पर समय समय पर सवाल उठते रहे थे।
मोदी सरकार ने ऐसे कानूनों को समाप्त करके न्याय प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए अच्छे रास्ते का निर्माण करने की ओर कदम बढ़ाया है, जो अत्यंत ही स्वागत योग्य कहा जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने व्यावसायिक मामलों के निपटारे के लिए वाणिज्यिक न्यायालय गठित करने की दिशा में उचित कदम उठाए हैं।
आज विश्व के अनेक देशों में भारत के लोकतंत्र की प्रशंसा की जाती है, लेकिन लंबे समय से देश की सरकारों द्वारा लोकतंत्र को बचाने के लिए प्रयास किए गए, वे सभी नाकाफी ही साबित हुए। ऐसे में लोकतंत्र के तीन आधार स्तंभों में से एक न्याय पालिका में मामलों के निराकरण की धीमी गति कहीं न कहीं लोकतंत्र की उपादेयता पर सवालों का घेरा खड़ी करती है। हमारे न्यायालयों में जजों की कमी होने से लंबित प्रकरणों का पहाड़ बनता दिखाई दे रहा है।
अगर प्रकरणों का निराकरण करने की यही गति रही तो यह पहाड़ रूपी समस्या देश के विकास को अवरोधित ही करेगी। इसलिए हमारी सरकारों को चाहिए कि इस दिशा में तो सार्थक प्रयास किए जाएं, साथ ही अन्य शासकीय कार्यालयों में भी अपेक्षित अधिकारी और कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए। अगर ऐसा होता है तो देश विकास की राह पर दौड़ लगाता दिखाई देगा।
सुरेश हिंदुस्थानी