नई दिल्ली। स्पेन से आए टेल्गो ट्रेन के कोच का ट्रायल भारतीय रेलवे ट्रेक पर हो गया। यह ट्राइल यह परखने के लिए किया गया था कि टेल्गो के कोच में ज्यादा कंपन तो नहीं होता। बरेली से मुरादाबाद के बीच किए गए इस ट्रायल में ट्रेन की रफ्तार को 80-115 के बीच रखा गया था। अगर यह ट्रेन चल पडी तो दिल्ली-मुंबई के सफर में 5 घंटे कम हो जाएंगे।
जानिए इस ट्रायल और ट्रेन में क्या खास है
टेल्गो ट्रेन के जिन 9 कोच का ट्रायल किया गया है वे कंपनी ने अपने खर्च पर यहां भेजे हैं। इसके लिए भारत से कोई राशि नहीं ली गई। ट्रायल का खर्च भी टेल्गो ने वहन किया।
खास बात यह रही कि इस ट्रेन को भारतीय इंजन लगाकर दौडाया गया। ट्रायल के दौरान ट्रेन में रेत की बोरियां लाद दी गईं। इस ट्रेन का ट्रायल दो सप्ताह तक 90 किमी की इस लाइन पर किया जाता रहेगा।
इस ट्रायल के बाद 40 दिन तक इसे मथुरा और पलवल वाले राजधानी के रुट पर दौडाया जाएगा। इस दौरान ट्रेन की स्पीट 180 किमी प्रतिघंटा रहेगी।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु का कहना है कि टेल्गो ट्रेन के ट्रायल का मकसद दिल्ली—मुंबई के बीच लगने वाले यात्रा समय में 5 घंटे की कटौती करना है। ट्रल्गो ने खुद ट्रायल के लिए कोच मुहैया कराए है। टेल्गो ट्रेन अगर वर्तमान पटरियों में बिना बदलाव किए 160-200 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चलने में सफल रही तो दिल्ली-मुंबई का सफर 12 घंटे में पूरा हो जाएगा। वर्तमान में इस सफर में 17 घंटे लगते हैं।
सफर के समय में कमी के साथ ही टेल्गो के हल्के कोच 30 प्रतिशत कम ऊर्जा लेते हैं। इससे रेलवे का खर्चा भी कम होगा। टेल्गो का दावा है कि उसके कोच मोड़ पर भी तेज रफ्तार से चल सकते हैं। इसके सीटें भी हवाई-जहाज की सीटों जैसी लगती हैं।
वर्तमान में टेल्गो ट्रेन एशिया और अमरीका में कई जगहों पर चल रही है। छोटे-मोटे बदलावों को छोड़कर ट्रायल रन के दौरान पटरियों में कोई बदलाव नहीं होगा।