माउण्ट आबू। पैसे, राजनीतिक रसूखात और प्रशासनिक पकड के दम पर न्यायालयों के कायदों को ठेंगा दिखाने का परिणाम माउण्ट आबू में रविवार सवेरे से दिखने लगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार माउण्ट आबू को ईको सेंसेटिव जोन घोषित करते हुए यहां पर निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित किया गया था। इसके बावजूद राजनीतिक रसूखात के दम पर जिन लोगों ने निर्माण कार्य करके करोडो रुपए खर्च करके होटल और बिल्डिंगें खडी कर दी थी, उन पर राजस्थान हाईकोर्ट में भरत जैन की ओर से लगाई गई जनहित याचिका के आदेशानुसार गाज गिरनी शुरू हो गई है।…
रविवार सवेरे नक्की बाजार मार्ग पर स्थित वक्फ संपत्ति इमामबाडे को तोडने से आदेशो की अनुपालना शुरू हुई, लेकिन प्रशासन के अभी भी बडे हाथियों पर हा थ नहीं डालने को लेकर इस कार्रवाई पर स्थानीय लोग सवालिया निशान लगाने लगे है। जिन लोगों के नाम और नियमविरुद्ध निर्माणों का जिक्र पीआईएल में करते हुए फोटो और दस्तावेज न्यायालय में लगाए गए हैं, उन पर गाज गिरने की शुरूआत नहीं हुई है।
अधिकारी भी कम दोषी नहीं
माउण्ट आबू में बडे पैमाने पर अवैध निर्माण के सबसे बडे दोषी अधिकारी, कर्मचारी और माॅनीटरिंग कमेटी के वो सदस्य और पदाधिकारी नजर आते हैं, जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाए। इस तरह की कार्रवाई के सबसे बडे दोषी अधिकारी हैं। माॅनीटरिंग कमेटी ने नियमविरुद्ध और अपने अधिकारों से परे जाकर अनुमतियां जारी करते हुए माउण्ट आबू के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में सबसे बडी भूमिका अदा करने का भी आरोप लगा।
राज्य सरकार की ओर से गठित खन्ना कमेटी की रिपोर्ट मे भी यह है कि माॅनीटरिंग कमेटी अपना काम सही से नहीं कर पाई। इसके बावजूद इस कमेटी में शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों और सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। कमेटी ने जरूरतमंदों को अनुमतियां नहीं देकर रसूखदारों को नवाजा।
चैपट राजाओं का क्या !
जिला कलक्टर माउण्ट आबू में उच्चतम न्यायालय के आदेशो पर गठित माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्य सचिव हैं। आलम यह है कि कमेटी गठित होने से लेकर आज तक के सभी कलक्टर माउण्ट आबू निरंतर महीने या सप्ताह में जाते रहे हैं। उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका आयुक्त वहीं पर मौजूद रहे, नगर पालिका के हलका जमादार और पार्षद अपने क्षेत्रों में निरंतर आते जाते रहे।
इसके बावजूद वह इन अवैध व नियमविरुद्ध निर्माणों पर रोक नहीं लगा पाए। राजस्थान हाइकोर्ट में जनहित याचिका के डर से यह कार्रवाई अवैध निर्माण करने वालो पर तो शुरु हो गयी है, लेकिन इतने बडे पैमाने पर अवैध और नियम विरुद्ध निर्माणों की अनदेखी करके उच्चतम न्यायालय के आदेशो की पालना नहीं करवा सकने वाले अधिकारी इसकी जद से आज भी अलग हैं।