गोरखपुर। कम कीमत पर विश्व को धर्म और आध्यात्म की किताबें देने वाले गीता प्रेस के कर्मचारियों की हड़ताल से प्रेस में पिछले 21 दिनों से पुस्तकों के छपायी का कार्य ठप पड़ा है।
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर महानगर में स्थित गीता प्रेस का जो परिसर सद्भव और सहकार के लिए जाना जाता था वहां आज अशांति है। धर्म और अध्यात्म में रुचि रखने वाले भी भचतित हैं। इसका कारण वेतन वृध्दि और सहायक प्रबंधक के साथ अभद्रता करने वाले हटाए गए 17 कर्मचारियों के वापसी की मांग लेकर हड़ताल जारी है जिससे गीता प्रेस इस समय संकट से जूझ रहा है।
सन 1923 में स्थापित गीता प्रेस से अब तक 55 करोड़ से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। 15 भाषाओं में गीता प्रकाशित होती है। इस प्रेस के 92 साल के इतिहास में इतना अडियल कर्मचारी आन्दोलन होने की यह पहली घटना है।
इस बीच गीता प्रेस कर्मचारी संघ के नेताओं ने कहा है कि प्रेस हमारी रोजी रोटी है हम क्यों चाहेंगे कि यह बंद हो जाए। दोष प्रबंध तंत्र का है। वेतन वृध्दि एवं हटाए गए कर्मचारियों को वापस लिया जाए सभी काम करने को तैयार हैं।
गीता प्रेस बंद नही होने दिया जाएगा
उधर, गीता प्रेस प्रबंधन ने कहा है कि एक खबरिया चैनल में दिखाए गए समाचार गीता प्रेस बन्द होने के कगार पर है जो भ्रामक और असत्य है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस न तो बंद होने की स्थिति में है और न ही इसे बन्द होने दिया जाएगा। प्रेस बंद नहीं हुआ है केवल कर्मचारियों के हड़ताल के कारण काम बंद है।
उन्होंने कहा कि उदन्डता के कारण कुछ कर्मचारियों को निलम्बित किए जाने से कर्मचारी हड़ताल पर है। कर्मचारियों के हड़ताल का भी आशय यह नहीं है कि प्रेस बंद कर दिया जाए। गीता प्रेस में किसी तरह की कोई आर्थिक समस्या नहीं है और प्रबंध तंत्र यह बताना चाहता है कि गीता प्रेस किसी तरह का कोई चंदा नहीं लेता है।