अजमेर। दाहरसेन स्मारक सिंध के लिए पहला कदम है और हर सिंधी को इसे देखना चाहिए। मैं खुद आनन्द महसूस करता हूं कि स्मारक का हर कार्य अदभुद है। इसे ऐसे ही बनाए रखें। मैं आशा करता हूं कि सभी सिंध और हिन्द के लिए यह तीर्थ स्थान है।
अब सिन्ध के गौरवमयी इतिहास व पहचान को युवा पीढी तक पहुचानें की जिम्मेदारी हमारी है। राष्ट्र रक्षा में बलिदान हुए सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन का स्मारक देश—दुनिया में अविस्मरणीय प्रेरणा केन्द्र है। ये विचार अमरीकावासी वरिष्ठ साहित्यकार सूफी मुनव्वर लघारी ने सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक स्थल पर आयोजित संगोष्ठी में कहे।
महाराजा दाहरसेन विषय पर विचार रखते हुए लघारी ने कहा कि मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है कि जिस महाराजा पर विदेशी आक्रमणकारियों ने धोखे से हमला कर शहीद कर दिया उस वीर और बलिदानी राजा का भव्य स्मारक यहां बना हुआ है। औंकार सिंह लखावत ने अपने यूआईटी कार्यकाल में महाराजा दाहरसेन का यह स्मारक बनवाया है, हर सिन्धी उन्हें धन्यवाद देता है।
लघारी ने महाराजा दाहरसेन जैसे वीरों की आज के दौर में जरूरत बताते हुए कहा कि उन्होंने सिन्ध से लेकर कश्मीर तक सभी को मिलाकर रखा था और आज फिर उन्हीं के जैसे महापुरुष की जरूरत है। मैंने अमरीका की कांग्रेस में यह मुद्दा रखा है और सिन्ध में हो रहे अत्याचारों को तुरन्त बन्द करने की अपील की है।
भारत सरकार से भी अपील है कि अपनी वार्ता में सिन्ध के विषय को भी पूरी ताकत के साथ रखे। सिन्ध व्यापार का बढा केन्द्र था जहां न सिर्फ समुद्र बन्दरगाह, कोयला, गैस, खेती, पवित्र नदी है बल्कि संस्कृति का बहुत बडा केन्द्र भी है। आमजन के प्रश्नों के उतर देते हुए लघारी ने कहा कि आपके और हमारे खान-पान, तीज त्यौहार सब एक जैसे हैं हम सब मिलकर मनाएं और भाईचारे के साथ आगे बढें।
इस अवसर पर दिल्ली से आए साहित्यकार डॉ. घनश्यामदास व जोधपुर के रणवीर सिंह सोढा ने भी विचार रखते हुए कहा कि हम सब मिलकर अपनी संस्कृति व साहित्य को जोडकर समन्वय बनाएं। महाराजा दाहरसेन के बलिदानी परिवार को प्रेरणादायी बताते हुए सिन्ध के वर्तमान हालतों पर भी प्रकाश डाला।
पूर्व संभागीय श्रम आयुक्त आर.पी पारीक, जिला रसद अधिकारी सुरेश सिन्धी, भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नवलराय बच्चाणी ने कहा कि ऐसी संगोष्ठियों से संस्कृति का ज्ञान बढता है और बाहर से आने वाले अतिथियों को दाहरसेन स्मारक का अवलोकन अवश्य कराना चाहिए और इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाना चाहिए।
समिति की ओर कंवलप्रकाश किशनानी ने आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी रखते हुए कहा कि 16 जून को बलिदान दिवस के अवसर पर महाराजा दाहरसेन के नाम से राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने की परंपरा शुरू किए जाने के बाद स्मारक का नाम देश दुनिया में पहुंचा है।
ईश्वर मनोहर उदासीन आश्रम के महन्त स्वरूपदास उदासी ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि सिन्ध की पवित्र भूमि सनातन धर्म व सिन्धु संस्कृति की पहचान है, देश दुनिया में सदैव प्रेम व भाइचारे का संदेश दिया है।
कार्यक्रम के शुभारम्भ में भारत माता व महाराजा दाहरसेन चित्र पर दीप प्रज्जवलन व माल्यार्पण किया गया। देवीदास दीवाना व घनश्याम भगत ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए। स्वागत भाषण नारायण सोनी व आभार मोहन तुलस्यिाणी ने प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने किया। ताराचन्द राजपुरोहित ने हिंगलाज माता पूजा अर्चना करवाई।
कार्यक्रम में पार्षद मोहनलाल लालवाणी, विकास समिति अध्यक्ष अरविन्द पारीक, कमल पंवार, रमेश मेंघाणी, एडवोकेट महेश सावलाणी, सिन्धी शिक्षा समिति के अध्यक्ष भगवान कलवाणी, सिन्धु समिति अध्यक्ष जयकिषन लख्याणी, महेश टेकचंदाणी, नरेन्द्र बसराणी, भामस नेता धर्मू पारवाणी, तुलसी सोनी, जयकिशन वतवाणी, गोविन्दराम, गीता राम मटाई, भगवान साधवाणी, विश्व हिन्दु परिषद महामंत्री शषिप्रकाश इन्दौरिया, प्रदीप हीरानंदाणी, खेमचन्द नारवाणी सहित कई कार्यकर्ता उपस्थित थे।