सबगुरु न्यूज। 22 दिसम्बर 2017 को सूर्य देव उत्तरायन की ओर बढ़ेंगे। 15 दिसम्बर को सूर्य मल मास में उदय के बाद 27-01 घंटे बाद धनु राशि में प्रवेश करेंगे।
दुनिया के हस्तक्षेप से दूर प्रकृति की अपनी प्रधानता रहीं हैं और इसी के कारण प्रकृति अपनी लीला को अंजाम देती है और मानव अपने अनुसार उसे व्यावहारिक जीवन में उतारता हुआ हर काल के भाग का नामकरण करता हुआ एक श्रेष्ठ व्यवस्था को अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार लागू करने की कवायद करता है।
पृथ्वी पर प्रत्यक्ष रूप से पडने वाले सूर्य ओर चन्द्रमा के प्रभावों को देख समाज में एक कार्य योजना का खाका तैयार करता है और उसी अनुरूप कार्य को अंजाम देने का प्रयास करता है।
आकाश का प्रमुख तारा सूर्य जो स्वयं प्रकाशमान है और आकाश के अन्य ग्रह नक्षत्रों को रोशनी देता है जिसे हम आत्मा का कारक मानते हैं जो ऊर्जा का विशाल पिंड है। वह अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ जब उतर दिशा की ओर रुख़ करता है तो उसके मार्ग में मुख्य रूप से धनु राशि का तारा मंडल पडता है। उस तारामंडल में एक नक्षत्र “मूल” आता है।
प्राचीन ॠषि मुनियों ने ऐसा महसूस किया है कि यहां आत्मकारक सूर्य अपनी तेज ऊर्जा के बावजूद भी अपना गर्म प्रभाव पृथ्वी के कुछ हिस्सों पर नहीं डाल पाता और जीव व जगत को ठंड से प्रभावित होना पडता है। लेकिन जैसे ही वह आगे बढता जाता है तो उसकी ऊर्जा का पुन: ज्यादा प्रभाव पडने लग जाता है।
सूर्य की अपने यात्रा में धनु राशि से 241° शुरू हो जाती हैं और 270° तक यह धनु राशि रहती हैं। उसके बाद मकर राशि का तारामंडल प्रारंभ हो जाता है। इस धनु राशि का क्षेत्र प्राचीन ऋषि मुनियों ने आकाश के एक ग्रह बृहस्पति का माना गया है। इस ग्रह को ज्योतिष शास्त्र मे ज्ञान और बुद्धि का प्रमुख ग्रह माना जाता है। यह आकाश तत्व ओर सत गुणी माना जाता है।
सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा का ग्रह माना जाता है और इन्हीं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष शास्त्र यह निर्देश देता है कि ज्ञान में आत्मा खो जाती है और सूर्य की ऊर्जा यहां की पचंडता पर वृहस्पति ग्रह का प्रभाव ज्यादा पडता है। केतु के नक्षत्र मूल में सूर्य के प्रवेश से ही मल मास शुरू हो जाता है। अर्थात धनु राशि के मूल नक्षत्र से सूर्य की ऊर्जा अप्रभावी हो जाती है तथा सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं और मकर राशि में सूर्य के प्रवेश तक इन्तजार किया जाता है।
जहां ज्योतिष शास्त्र को नहीं माना जाता है वहा लगातार मांगलिक कार्य होते रहते हैं। वहां सूर्य को सदा ही ऊर्जावान मानकर निस्संकोच विवाह आदि कार्यों को किया जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति की व्यवस्था को हर सभ्यता और संस्कृति तथा धर्म ने अपने अपने अनुसार मान कर कार्य को अंजाम दिय़ा हैं लेकिन प्रकृति की संस्कृति अपनी ही है। सूर्य का अपना यात्रा पथ मौसम व ऋतु परिवर्तन करता है लेकिन संस्कृति उसे अपनी मान्यता देकर अपने अनुसार कार्य करती हैं। यही कारण है कि सर्वत्र मांगलिक कार्यों पर निषेध नहीं होता।
इसलिए हे मानव तू अपने मन को मजबूत रख और मन व विचारों में तालमेल बैठा कर उचित अवसर का लाभ ग्रहण कर जिस वक्त भी जो मिल जाए क्योकि मल मास तो एक ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है प्रकृति का नियम नहीं और ना ही इसे प्रकृति ने माना। प्रकृति अपने ही सिद्धांतों पर कार्य करती है न कि मानवीय सिद्धांतों पर।
सौजन्य : भंवरलाल