नई दिल्ली । सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति पर पुलिस की गिरफ्तारी के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रहार किया है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 एक को खतम कर दिया है। यह धारा फेसबुक की गई अभिव्यक्ति पर पुलिस को पोस्ट करने वाले को गिरफ्तार करने का अधिकार देती थी। इस धारा के अलावा आईटी एक्ट में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस आर एफ नरीमन की बेंच ने मंगलवार को अपने निर्णय में कहा कि कोई व्यक्ति कुछ भी नहीं लिख सकते हैं, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं होना चाहिए। सर्वोच्च अदालत में इस मामले में याचिका दाखिल करने वालों में से एक याचिकाकर्ता विनय राय ने इसका स्वागत किया है।
हो चुकी हैं गिरफ्तारियां
आईटी ऐक्ट की इस धारा के शिकार भारत में कई लोग हो चुके हैं। सरकारों ने राजनीतिक टिप्पणी और पोस्ट डालने के लिये लोगों को विशेष रूप से शिकार बनाया था। उत्तर प्रदेश में एक कार्टूनिस्ट से लेकर पश्चिम बंगाल में प्रोफेसर इस धारा के पीडित रह चुके हैं।
हालत यह रहे कि आजम खान को लेकर फेसबुक पर किये गये एक कॉमेंट की वजह से उत्तर प्रदेश सरकार ने तो एक 19 वर्षीय छात्र को भी जेल में डाल दिया था; छात्र के खिलाफ आईटी ऐक्ट की धारा 66ए समेत अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, इसलिए यह असंवैधानिक है। याचिकाकर्ताओं ने ये मांग भी की गई थी कि अभिव्यक्ति की आजादी से जुडे किसी भी मामले में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने 16 मई 2013 को एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले व्यक्ति को आईजी या डीसीपी जैसे वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
इस मामले में सरकार की दलील है कि इस कानून के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। इसे पूरी तरह निरस्त कर देना सही नहीं होगा। सरकार के मुताबिक इंटरनेट की दुनिया में तमाम ऐसे तत्व मौजूद हैं जो समाज के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस को शरारती तत्वों की गिरफ्तारी का अधिकार होना चाहिए।