नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला के उस आग्रह को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने सरेंडर करने के लिए और समय देने की मांग की है। शशिकला की ओर से बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को मेंशन किया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में मेंशन किया और कहा कि इस पर आज तीन बजे सुनवाई कर लिया जाए। उनका कहना था कि शशिकला को सरेंडर करने के पहले कुछ व्यक्तिगत इंतजाम करना होगा।
अगर उन्हें सरेंडर करने के लिए और समय नहीं दिया गया तो उन्हें काफी नुकसान होगा। जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि फैसला दिया जा चुका है। तुरंत का मतलब तुरंत होता है। जस्टिस पीसी घोष ने कहा कि मंगलवार को उन्होंने और जस्टिस अमिताभ राय ने इस पर साफ साफ फैसला किया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला का मतलब ये है कि शशिकला, सुधाकरन और इलावारसी के पास अब सरेंडर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। आपको बता दें कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए शशिकला को दोषी करार दिया।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने चार साल के जेल की सजा सुनाई थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई। कोर्ट ने शशिकला समेत तीनों आरोपियों को तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने शशिकला, इलावारसी और सुधाकरन तीनों को चार चार साल की जेल और तीनों पर दस-दस करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जयललिता की मौत की वजह से उनपर कोई फैसला नहीं सुनाया गया है।
-शशिकला के रिश्तेदारों को भी सुनाई सजा
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला के अलावा उनके दो रिश्तेदार इलावरसी और सुधाकरण को भी दोषी पाया है। सभी को चार साल की सजा दी गई है। वहीं जयललिता के निधन के बाद उन पर चल रहे सभी मामलों को खत्म कर दिया गया। अब आपको बताते हैं इस मामले में कब-कब क्या हुआ ।
-1996 में सुब्रमण्यम स्वामी ने दर्ज कराया मामला
जिस प्रकरण में शशिकला को सजा हुई है वह मामला 1996 में जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी ने दर्ज करवाया था। उनका आरोप था कि जयललिता ने 1991 से 1996 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 66.65 करोड़ की संपत्ति जमा की। यह उनके आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक है।
-इस प्रकरण में 1996 में हुई थी जयललिता की गरफ्तारी
इस प्रकरण की जांच के बाद 7 दिसंबर 1996 को जयललिता को गिरफ्तार किया गया था। आगे चलकर 1997 में ं जयललिता के साथ-साथ तीन अन्य के खिलाफ भी चैन्नई की एक अदालत में मुकदमा शुरू हुआ। चार्जशीट में इन लोगों पर आईपीसी की धारा 120 बी, 13 (2) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) (ई) के तहत आरोप लगाए गए।
-खारिज हुई थी याचिका
जयललिता पर 1 अक्टूबर 1997 को तत्कालीन राज्यपाल एम फातिमा बीबी ने मुकदमा चलाने की अनुमति दी। इसे चुनौती देने के लिए उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट में तीन याचिकाएं लगाईं। लेकिन कोर्ट ने तीनों याचिकाओं को खारिज कर दी।
तमिलनाडु में 2001 में हुए विधानसभा चुनाव में जयललिता की पार्टी एआईएडीएम को स्पष्ट बहुमत मिला।
जिसके बाद जयललिता मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन उनकी नियुक्ति को चुनौती दी गई। इसका आधार अक्तूबर 2000 में तमिलनाडु स्माल इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (टीएएनएसआई) मामले में उन्हें दोषी ठहराये जाने को बनाया गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति रद्द कर दी थी।
-उपचुनाव में जीती, ली सीएम पद की शपथ
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जयललिता की सीएम पद पर नियुक्ति रद्द करने के बाद वे 21 फरवरी 2002 को आंदीपट्टी विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में जीती। फिर उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गई थी।
-ट्रांसफर किया गया केस
पहले यह मामला तमिलनाडू में ही था, लेकिन 2003 में द्रमुक महासचिव के अनबझगम ने इस मामले को कर्नाटक स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। उनकी दलील थी कि जयललिता के मुख्यमंत्री रहते तमिलनाडु में इस मामले की निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है।
इसलिए इस मामले को कर्नाटक शिफ्ट किया जाए। इस पर सहमत होते हुए सुप्रीम कोट ने 18 नवंबर 2003 को आय से अधिक संपत्ति के इस मामले को बेंगलुरु ट्रांसफर कर दिया।
इस मामले में जयललिता की अक्तूबर-नवंबर 2011 में विशेष अदालत में पेश हुईं थी और उन्होंने करीब एक हजार 339 सवालों के जवाब दिए। इस मामले में कर्नाटक सरकार ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता बीवी आचार्य विशेष सरकारी वकील नियुक्त किए गए थे, लेकिन बाद में 12 अगस्त 2012 को आचार्य ने विशेष सरकारी वकील के रूप में काम करने में असमर्थता जताई।
कर्नाटक सरकार ने जनवरी 2013 में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया। फिर 2 फरवरी 2013 को कर्नाटक सरकार ने जी भवानी सिंह को विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया। कर्नाटक सरकार ने 26 अगस्त 2013 को इस मामले से भवानी सिंह को हटाने की अधिसूचना जारी की और 30 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की अधिसूचना रद्द कर दी।
-2014 में पाया गया दोषी
विशेष अदालत ने आय से अधिक संपत्ति मामले में 27 सितंबर 2014 को फैसला सुनाया। इसमें जयललिता और शशिकला समेत चार को दोषी पाया। जयललिता को चार साल की जेल और 100 करोड़ रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई। 29 सितंबर 2014 को जयललिता ने कर्नाटक हाई कोर्ट में विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देकर जमानत की मांग की।
अक्तूबर में हाई कोर्ट ने जयललिता की जमानत याचिका खारिज कर दिया। इसके बाद 9 अक्तूबर 2014 को जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की। जहां से 14 अक्तूबर को को उन्हें जमानत मिली और कर्नाटक हाई कोर्ट को तीन महीने में सुनवाई पूरी करने को कहा। जिसके बाद 21 दिन जेल में बिताने के बाद जयललिता रिहा हुईं।
-कर्नाटक हाई कोर्ट में हो गई थी बरी
द्रमुक के महासचिव ने 2015 में कर्नाटक हाई कोर्ट से फैसला सुनाने की अपील की। इसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह अधिसूचित किया कि जस्टिस सीआर कुमारस्वामी की विशेष अवकाशकालीन पीठ जयललिता की अपील पर 11 मई 2015 को फैसला सुनाएगी। सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाई कोर्ट ने जयललिता और तीन अन्य को बरी कर दिया।
इस मामले में 11 मार्च 2015 को जयललिता की अपील पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने आय से अधिक मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
-कर्नाटक सरकार ने दी थी चुनौती
कर्नाटक हाई कोर्ट से जयललिता समेत तीन और आरोपियों के आय से अधिक संपत्ति मामले में बरी हो जरले के बाद कर्नाटक सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस अपील पर मामले में 27 जुलाई 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को नोटिस जारी किया और फिर 23 फरवरी 2016 को जयललिता को दोषमुक्त किए जाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू हो गई।
सुप्रीम कोर्ट ने सात जून 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस समय तक बहुमत होने के बाद भी जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री नहीं बन पाई थी। जून 2016 को जयललिता के इस मामले में बरी होने के बाद उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की शपथ ली।
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ही पांच दिसंबर 2016 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। जिसके बाद ओ पनीरसेल्वम को तमिलनाडु का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। फिर आज 14 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता, शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को दोषी करार दिया। कोर्ट ने जयललिता के निधन की वजह से उन पर चल रहे सभी मामलों को खत्म कर दिया। इस मामले में शशिकला, इलावरसी और सुधाकरण को चार साल की सजा सुनाई।