नई दिल्ली। अपनी तरह का ऐतिहासिक कदम उठाते हए सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के सिटिंग जज जस्टिस सीएस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया।
वे शुक्रवार को भी सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को दस हजार रुपए का निजी मुचलका भरने का भी निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के डीजीपी को स्वयं जमानती वारंट तामील करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 31 मार्च तक पेश होने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें कोर्ट में पेश होने से सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता है।
जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को फैक्स से संदेश भेजा था कि वे चीफ जस्टिस और दूसरे जजों से मिलना चाहते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये उनके नोटिस का जवाब नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस कर्णन ने लिखा था कि उनके प्रशासनिक अधिकार पुनर्स्थापित किए जाएं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही चलाने का फैसला किया था।
पिछले 13 फरवरी को भी अवमानना कार्यवाही का नोटिस मिलने के बावजूद जस्टिस कर्णन सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए थे।
पिछली सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि जस्टिस कर्णन के लेटर को देखते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ये कारण नहीं पता कि जस्टिस कर्णन कोर्ट में पेश क्यों नहीं हुए। इसलिए हम इस मामले पर जस्टिस कर्णन से कुछ सवालों के जवाब चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार वापस ले लिया था। कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को निर्देश दिया था कि वो सभी न्यायिक फाइलें हाईकोर्ट को तत्काल प्रभाव से सौंप दें।
पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कालेजियम ने मार्च में उनका स्थानांतरण कर दिया था। जस्टिस कर्णन ने कहा है कि दलित होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
उन्होंने तबादले के आदेश को खुद ही आदेश पारित कर स्टे कर दिया था तथा चीफ जस्टिस को नोटिस देकर जवाब मांगा था। लेकिन बाद में वह मान गए।