नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू कराने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय कैसे संसद को कोड लागू करने का आदेश जारी कर सकता है। न्यायलय ने इस पर दलील देते हुए कहा कि कानून बनाना सरकार का काम है।
मुख्य न्यायाधीश ने यह याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर किसी को किसी नियम से दिक्कत है तो समुदाय का ही कोई व्यक्ति सामने क्यों नहीं आ रहा है।
उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता के बारे में कानून की स्थिति पहले ही स्पष्ट है। पहले न्यायालय में भेदभाव की शिकायत लेकर आएं, इसके बाद ही वह इस पर सुनवाई करेंगे।
जानकारी हो कि देश में समान नागरिक संहिता लागू कराने की मांग वाली जनहित याचिका बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की थी।
उन्होंने कहा था कि संविधान कहता है कि देश में सब धर्म बराबर हैं, लेकिन शादी, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर धर्मों में अलग-अलग नियम हैं। इसलिए उन्होंने मांग की थी कि संविधान का पालन करने के लिए यह संहिता लागू करने के आदेश जारी किए जाएं।
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही एक अन्य मामले में केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता पर जवाब मांगा है। वह मामला ईसाई कानून में तलाक के लिए अलग रहने की अवधि में अन्य धर्मो के कानून में अंतर का है।
सरकार ने अभी तक उस मामले में जवाब दाखिल नहीं किया है। बता दें कि केवल हिंदू धर्म में ही तलाक के बाद पत्नी को भरण-पोषण के लिए निश्चित राशि देने का प्रावधान है।