नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को 10 साल की एक रेप पीडिता को स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अबॉर्शन कराने की इजाजत नहीं दी। वह 32 महीनों की प्रेगनेंट है।
प्रधान न्यायाधीश जे.एस. खेहर और न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने गर्भवती बच्ची के परीक्षण के लिए गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद गर्भपात की अनुमति के लिए दायर याचिका खारिज कर दी।
चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी। इसके मुताबिक गर्भपात से गर्भवती बच्ची के जीवन को खतरा हो सकता है।
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रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए खंडपीठ ने कहा कि गर्भावस्था 3 सप्ताह की है। 10 वर्षीय बालिका के लिए यह बड़ा जोखिम है। यह प्रारंभिक गर्भावस्था नहीं है।
न्यायालय ने गर्भपात की अनुमति देने के संबंध में बच्ची के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया था।
यह आदेश वकील आलोक श्रीवास्तव की याचिका पर आया है। उन्होंने पहले चंडीगढ़ की जिला अदालत में याचिका दायर की थी, जो 18 जुलाई को खारिज हो गई। इसके बाद उन्होंने शीर्ष अदालत की शरण ली।
याचिका खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि बच्ची को उचित देखभाल और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। यह भी कहा गया कि बच्चे के प्रसव के संबंध में चिकित्सक सर्वश्रेष्ठ विकल्प अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
याचिकाकर्ता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971′ के अधिनियम 3 में संशोधन की मांग की है, जिसके तहत 20 हफ्ते से ज्यादा समय के गर्भ को गिराया नहीं जा सकता।
शीर्ष न्यायालय ने तीन जुलाई को कोलकाता की 26 सप्ताह की एक गर्भवती महिला को गर्भपात की अनुमति हालांकि दे दी थी। न्यायालय ने यह अनुमति शहर के प्रमुख अस्पताल एसएसकेएम की उस रिपोर्ट के आधार पर दी थी, जिसमें कहा गया है कि भ्रूण गंभीर रूप से विकृत हो चुका है।