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Supreme Court three times the government would oppose divorce
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सुप्रीम कोर्ट में तीन बार तलाक का विरोध करेगी केंद्र सरकार

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सुप्रीम कोर्ट में तीन बार तलाक का विरोध करेगी केंद्र सरकार
Supreme Court three times the government would oppose divorce
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Supreme Court three times the government would oppose divorce

नई दिल्ली। केंद्र सरकार महिला अधिकारों के आधार पर ‘एक साथ तीन तलाक’ की व्यवस्था का उच्चतम न्यायालय में विरोध करेगी। साथ ही इस बात पर जोर देगी कि इस मुद्दे को समान आचार-संहिता के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

कानून मंत्रालय इस मुद्दे पर इस महीने के आखिर में समग्र उत्तर दाखिल करेगा। इस मुद्दे पर गृह, वित्त और महिला एवं बाल विकास मंत्रालयों सहित अंतर-मंत्रालयी स्तर पर विचार किया जा रहा है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, ‘हमें इसको समान आचार संहिता के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। हमें महिलाओं के अधिकारें के संदर्भ में बात करने की जरूरत है। हमारा जवाब सिर्फ अधिकारों पर केंद्रित रहने वाला है। किसी महिला के अधिकार अपरिहार्य हैं और संविधान के अनुसार उसके पुरुषों के बराबर के अधिकार हासिल हैं। उन्होंने कहा, ‘अदालत का हर फैसला हमें धीरे-धीरे इन समान अधिकारयों की ओर ले जा रहा है। एक साथ तीन तलाक की परंपरा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी नहीं है। यह सिर्फ हमारे यहां है।’

गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले सप्ताह बहुविवाह, एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिदत) और ‘निकाह हलाला’ की मुस्लिम परंपराओं के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार का क्या रुख होगा, इस पर चर्चा के लिए बैठक की।

चार सप्ताह का दिया था समय
इस सूत्र के अनुसार सरकार के सभी वरिष्ठ मंत्रियों में इस बात की सहमति थी कि इस जटिल मुद्दे को लैंगिक अधिकार के चश्मे से देखा जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में तीन तलाक के मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया था।
इन याचिकाओं में उत्तराखंड की महिला सायरा बानो नामक महिला की याचिका भी शामिल है जिन्होंने बहुविवाह, एकसाथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिदत) और ‘निकाह हलाला’ की मुस्लिम परंपराओं असंवैधानिक करार देते हुए चुनौती दी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस महीने की शुरुआत में देश की सर्वोच्च अदालत से कहा था कि सुधारों के नाम पर पर्सनल लॉ फिर से नहीं लिखा जा सकता।