नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मंदिर बोर्ड तथा सरकार से कई सवाल किए।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव वेदों, उपनिषदों या किसी भी शास्त्र में नहीं किया गया है, तो सबरीमाला में ऐसा क्यों है। कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करेगा कि क्या महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को स्थायी किया जा सकता है या नहीं।
मंदिर बोर्ड तथा सरकार को जवाब देने के लिए छह हफ्ते का वक्त देते हुए कोर्ट ने पूछा कि सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश कब बंद किया गया था, तथा इसके पीछे क्या इतिहास है?
कोर्ट इस मामले में यह भी देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में रोक कहां तक ठीक है?
कोर्ट के मुताबिक वह दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है, तथा उसका मानना है कि मंदिर एक धार्मिक स्थल है और इसे तय पैमाने में होना चाहिए। इस मामले के लिए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और के. रामामूर्ति को कोर्ट का सहायक नियुक्त किया गया है।
उधर, मंदिर बोर्ड ने कहा है कि यह प्रथा 1,000 साल से चली आ रही है, तो अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को क्यों उठा रहा है। बोर्ड ने यह भी बताया कि सिर्फ सबरीमाला मंदिर ही नहीं, पूरे सबरीमाला पर्वत पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।