नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय से रोहिंग्या मुद्दे पर हस्तक्षेप न करने का आग्रह करते हुए कहा कि उन्हें प्रत्यर्पित करने का निर्णय सरकार का नीतिगत फैसला है।
केंद्र ने साथ ही कहा कि उनमें से कुछ का संबंध पाकिस्तानी आतंकवादी गुटों से है। शीर्ष न्यायालय रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि यह देश हित में लिया गया एक आवश्यक कार्यकारी फैसला है। केंद्र ने साथ ही कहा कि म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों का आना 2012 में शुरू हुआ था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर और न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मामले की अगली सुनवाई तीन अक्टूबर को करने का निर्देश दिया।
अदालत ने सुनवाई स्थगित करते हुए याचिकाकर्ताओं और अन्य को मामले की अगली सुनवाई से पूर्व केंद्र के रुख पर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने को कहा।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों का भारत में रहना न केवल अवैध है, बल्कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी गंभीर खतरा है।
केंद्र ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में रहने पर देश के संसाधन और देश की जनता के अधिकार प्रभावित होंगे। केंद्र ने साथ ही कहा कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तानी में मौजूद आतंकवादी संगठनों से भी संबंध हैं।
हलफनामे में कहा गया कि वे अन्य देश से आए शरणार्थी हैं, इसलिए भारतीय संविधान के तहत उनके कोई अधिकार नहीं हैं। केंद्र ने कहा कि पड़ोसी देशों से अवैध शरणार्थियों के भारी प्रवाह के कारण कुछ सीमावर्ती राज्यों की जनसांख्यिकी में गंभीर बदलाव आया है।
इसी बीच, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के भाग्य पर फैसला सर्वोच्च न्यायालय लेगा। उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय मामले पर सुनवाई कर रहा है और जो भी फैसला लिया जाएगा, वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही लिया जाएगा।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके देश वापस भेजने का फैसला राष्ट्रहित में है।
रिजीजू ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई से पूर्व संवाददाताओं से कहा कि यह एक गंभीर मामला है। सरकार जो भी करेगी, वह राष्ट्र हित में होगा।
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