नई दिल्ली। हिन्दी सिनेमा में अशोक कुमार, दिलीप कुमार और राजकुमार से अक्षय कुमार तक कई ‘कुमार दिखाई दिए हैं लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि कुमार नाम रखने का सिलसिला अभिनेता सैयद हसन अली से शुरू हुआ था और वह बॉलीवुड के पहले ओरिजिन कुमार थे।
सैयद हसन अली को निर्माता-निर्देशक देवकी बोस कलकत्ता के न्यू थियेटर में लाए थे और उन्होंने ही उन्हें कुमार नाम दिया था। यह वही कुमार थे, जिन्होंने के आसिफ की फिल्म मुगले आजम में संगतराश (मूर्तिकार) की भूमिका निभाई थी।
पहले उन्हें इस फिल्म में मुगल बादशाह अकबर की भूमिका निभाने का ऑफर मिला था लेकिन उन्हें मूर्तिकार की भूमिका अधिक चुनौतीपूर्ण लगी और उन्होंने अकबर की भूमिका निभाने से इन्कार कर दिया। बाद में पृथ्वीराज कपूर ने यह भूमिका निभाई।
इस तथ्य से भी बहुत लोग अनजान होंगे कि हिन्दी फिल्मों में स्टार सिस्टम की शुरूआत कुमार से ही हुई थी और वह अपने जमाने के सबसे महंगे कलाकार थे। कुमार का जन्म 23 सितबर 1903 में लखनऊ के आभिजात्य परिवार में हुआ था। उनका व्यक्तित्व बहुत शालीन, आकर्षक और शाहाना था। इसीलिए उनकी तुलना हॉलीवुड के गैरी कूपर, रूडोल्फ बेलेंटिनो और जेस स्टुअर्ट के साथ की जाती थी।
कुमार ने अपने 45 साल के कैरियर में सौ से अधिक फिल्मों में अपने जमाने की सभी मशहूर अभिनेत्रियों के साथ काम किया। इनमें शांता आप्टे, रतनबाई, सविता देवी, सितारा, जहांआरा कज्जन, बिब्बो, हंसा वाडकर और उनकी अभिनेत्री पत्नी प्रमिला प्रमुख थीं।
उन्होंने 1932 से 1948 तक नायक के रूप में कई भूमिकाएं निभाईं और बाद में अपनी बढ़ती उम्र के कारण 1948 से 1966 तक चरित्र भूमिकाएं कीं। कुमार शैडोज ऑफ डेथ फिल्म से हीरो बने और पूरन भगत में नायक की भूमिका से मशहूर हो गए। नर्गिस के डबल रोल वाली फिल्म रात और दिन उनकी आखिरी फिल्म थी।
कुमार की प्रमुख फिल्में हैं- अनोखी मोहब्बत/शहर का जादू(1934), धर्म की देवी/सागर (1935), पोस्टमैन/वतन (1938), नदी किनारे (1939), लक्ष्मी/सुहाग (1940), मधुसूदन/ताजमहल (1941), दिल्लगी (1942), नसीब (1945), देवर (1946), दूसरी शादी(1947), आपबीती (1946) और मजबूरी (1954)।
अभिनय के दौरान ही कुमार फिल्म निर्माण की ओर मुड़ गए और चालीस के दशक में उन्होंने ‘सिल्वर फिल्स’ नाम से अपने होम प्रोडक्शन की शुरूआत की और नए कलाकारों को मौका देते हुए इसके बैनर तले झंकार, भलाई, बड़े नवाब, नसीब, देवर, आपबीती और धुन जैसी यादगार फिल्मों का निर्माण किया। 1965 में वह अपना सब कुछ बेचकर पाकिस्तान चले गए और 1975 में अपनी पत्नी प्रमिला और चार बच्चों से मिलने के लिए वह भारत आए थे।