ग्वालियर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण महोत्सव तानसेन समारोह की शुरूआत पारंपरिक ढंग से हुई।
हजीरा स्थित तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से शहनाई वादन, हरिकथा, मिलाद, चादरपोशी और कव्वाली गायन हुआ।
सुर सम्राट तानसेन की स्मृति में पिछले 92 वर्ष से आयोजित हो रहे तानसेन समारोह में इस साल भी ब्राम्हनाद के शीर्षस्थ साधक तानसेन समाधि परिसर से गान मनीषी तानसेन को स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं।
तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से उस्ताद मजीद खां ने राग गूजरी तोड़ी में शहनाई वादन किया। इसके बाद ढोलीबुआ महाराज नाथपंथी संत सच्चिदानंद नाथ ने संगीतमय आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए ईश्वर और मनुष्य के रिश्तो को उजागर किया।
उन्होंने कहा कि अल्लाह और ईश्वर, राम और रहीम, कृष्ण और करीम, खुदा और देव सब एक हैं। हर मनुष्य में ईश्वर विद्यमान है। हम सब ईश्वर की सन्तान हैं तथा ईश्वर के अंश भी हैं।
उन्होंने कहा कि रोजा और व्रत, मुल्ला और पण्डित, ख्वाजा और आचार्य के उद्देश्य व मत एक ही है कि सभी नेकी के मार्ग पर चलें।
ढोली बुआ महाराज द्वारा प्रस्तुत भजन के बोल थे ‘आपहि खेल खिलाड़ी आपहि धर्मधारी हैं’ ढोलीबुआ महाराज ने ‘राम नाम को जप ले प्यारे’ भजन तथा ध्रुपद में भजन ‘जिसकी यहाँ भी वाह-वाह उसकी वहाँ भी वाह-वाह’ का भी गायन किया।
ढोलीबुआ महाराज हरिकथा के बाद मुस्लिम समुदाय से मौलाना इकबाल लश्कर व उनके अन्य साथियों ने इस्लामी कायदे के अनुसार मिलाद शरीफ की तकरीर सुनाई।
अन्त में हजरत मौहम्मद गौस व तानसेन की मजार पर जनाब कामिल हजरत जी द्वारा परंपरागत ढंग से चादरपोशी की गई।
इससे पहले जनाब भोलू झनकार सहित मुस्लिम समुदाय के अन्य गणमान्य नागरिक कब्बाली गाते हुये चादर लेकर पहुंचे। एक कव्वाली के बोल थे ‘खास दरबार-ए-मौहम्मद से ये आई चादर’।
राज्य शासन के संस्कृति विभाग, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी एवं मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के तत्वावधान में “तानसेन समारोह” इस बार 16 से 20 दिसम्बर तक आयोजित हो रहा है। तानसेन समारोह में कुल 9 संगीत सभाएं होंगीं।
पहली सात सभाएं तानसेन समाधि स्थल पर सजेंगी। आठवीं संगीत सभा 20 दिसम्बर को सुबह तानसेन की जन्म स्थली मुरार जनपद पंचायत के ग्राम बेहट में झिलमिल नदी के किनारे और अंतिम सभा इसी दिन सायंकाल गूजरी महल में सजेगी।