ग्वालियर। प्रेम, विरह व सौंदर्य से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोडऩे का काम करती है। मूर्धन्य गायिका डॉ. रीता देव के कंठ से झरे सुरों ने संगीत रसिकों को इसका प्रत्यक्ष एहसास कराया।
उन्होंने जब प्रसिद्ध दादरा हमरी अटरिया पे आवो संवरिया देखा देखी बलम हो जाए गाकर प्यार की पुलक गाया तो बड़ी संख्या में मौजूद रसिकजन प्रेम में गोते लगाते दिखे।
दिल्ली से पधारीं डॉ. रीता देव, ग्वालियर घराने की अग्रणी गायिकाओं में शुमार हैं। तानसेन समारोह की सभा में डॉ. रीता देव के अलावा ग्वालियर घराने की डॉ. वीणा जोशी, मुम्बई के युवा सारंगी वादक हर्षनारायण और सुप्रतिष्ठित ध्रुपद गायक पं. इंद्रकिशोर मिश्र मलिक की प्रस्तुतियाँ भी बेजोड़ रहीं।
संगीत सभा की दूसरी कलाकार डॉ. रीता देव ने अपने गायन के लिए राग मुल्तानी का चयन किया। उन्होंने इस राग में बड़ा ख्याल गोकुल गाँव का छोरा रे तथा छोटा ख्याल लागे मोरे नैन तुम्ही संग तीन ताल में प्रस्तुत किया।
इसके बाद उन्होंने राग भैरवी में ठुमरी बंसुरिया कैसे बजाई श्याम गाई, तो सुविख्यात गायिका पद्मभूषण श्रीमती गिरजा देवी की याद ताजा हो गई। डॉ. रीता देव ने ख्याल, ठुमरी व टप्पा, दादरा, कजरी, होरी, चैती एवं भजन की विशेषताएं गिरिजा देवी से ही सीखीं हैं।
डॉ. रीता देव ने अपने गायन का समापन दादरा हमरी अटरिया पे आवो संवरिया से किया। उनके साथ तबले पर श्री हिमांशु महंत, हारमोनियम पर डॉ. विवेक बंसोड़ व सारंगी पर मुरादअली खान ने संगत की।
मोरे मन लागो लंगरवा…
ग्वालियर घराने की युवा गायिका डॉ. वीणा जोशी (सारोलकर) ने जब तीन ताल में छोटा ख्याल मोरे मन लागो लंगरवा का गायन किया तो घरानेदार गायिकी जीवंत हो उठी। डॉ. वीणा जोशी शास्त्रीय संगीत को समर्पित ग्वालियर के प्रसिद्ध सांगीतिज्ञ घराने में जन्मी हैं। वे उच्च कोटि के गायक पं. एकनाथ सारोलकर की पुत्री हैं।
चतुर्थ संगीत सभा की पहली कलाकार डॉ. वीणा जोशी ने अपने गायन की शुरूआत राग तोड़ी से की। उनका गायन ग्वालियर घराने की विशेषता लिए हुए था। उन्होंने राग तोड़ी का अवरोही क्रम में पंचम का लगना अलग ही अनुभूति दे रहा था। आपने बड़ा ख्याल एक ताल में अब मोरे राम प्रस्तुत किया।
ग्वालियर घराने के अनुरूप खुली आवाज व सपाट ताल का सुंदर प्रयोग डॉ. वीणा जोशी के गायन में स्पष्ट सुना जा सकता था। उन्होंने अपने गायन का समापन सूरदास के प्रसिद्ध भजन अवगुन मोरे चित न धरो सुनाकर किया। बड़ी संख्या में मौजूद संगीत रसिकों की उन्हें खूब वाहवाही मिली। उनके साथ हारमोनियम पर महेश दत्त पाण्डे व तबला पर अनंत मसूरकर ने संगत की।
सारंगी की मिठास में डूबे रसिक
इस साल के तानसेन समारोह में युवा गायक-वादक संगीत रसिकों पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं। इसी कड़ी में मुम्बई से आए युवा सारंगी वादक हर्ष नारायण ने अपने सारंगी वादन ने सुरों की मीठी-मीठी धारा बहाई। वे प्रख्यात सारंगी वादक पं. राम नारायण के नाती व पं. बृज नारायण के सुपुत्र हैं।
हर्ष नारायण ने राग गुर्जर तोड़ी में तीन ताल में अपना वादन शुरू किया। उनके वादन में लयकारी सुनते ही बन रही थी। सफाईयुक्त वादन स्पष्टता लिए हुए था। उन्होंने इसके बाद तीन ताल में एक गत प्रस्तुत की। उनका वादन राग शुद्धता लिए हुए था।
उन्होंने अपने सारंगी वादन का समापन राग मारू में एक ठुमरी के वादन से किया। स्वर की मधुरता आपके वादन की विशोषता थी। उनके साथ तबले पर सुप्रतिष्ठित तबला वादक जनाब सलीम अल्लाह वाले ने संगत की।
हरी हरी छाड़…….
सभा का समापन बेतिया सांगीतिक घराने के सुप्रतिष्ठित गायक पं. इंद्रकिशोर मिश्र मलिक के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। उन्होंने अपने गायन के लिये राग मालेश्वरी का चयन किया। यह एक अप्रचलित राग है। इस राग में केवल चार स्वर लगते हैं।
नोम तोम के आलाप के बाद पं. इंद्रकिशोर ने चौताल में ध्रुपद हरी हरी छाड़ का गायन किया। इसके बाद उन्होंने इस राग में द्रुत चौताल में विश्वेश्वर विष्णु तीव्र ताल में प्रस्तुत की। उन्होंने इसी ताल में अंतिम बंदिश हर हर महादेव प्रस्तुत की।
पं. इंद्रकिशोर मिश्र ने अपने गायन का समापन आदिताल में तीखट प्रस्तुत की। इसमें पखावज के बोल रहते हैं। इनके साथ पखावज पर गोपाल उगीले व सारंगी पर सरवर हुसैन ने संगत की। तानसेन समारोह की चतुर्थ संगीत सभा की शुरूआत भी स्थानीय शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुई।