नई दिल्ली। टाटा-मिस्त्री विवाद के बीच भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी का कहना है कि कंपनी का निदेशक मंडल ‘मानद चेयरमैन’ की विशेषज्ञता का लाभ उस व्यक्ति के कंपनी छोडऩे के बाद भी उठा सकता है। हालांकि, नियामक ने स्वतंत्र निदेशकों को हटाने के लिए नियमों को कड़ा करने की वकालत की है।
पिछले साल टाटा संस के चेयरमैन पद से साइरस मिस्त्री को हटाए जाने के बाद से ही समूह में जारी ‘बोर्डरूम’ विवाद और समूचे घटनाक्रम पर नियामक की नजर है। इस विवाद में मिस्त्री ने रतन टाटा द्वारा हस्तक्षेप का भी आरोप लगाया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बाजार नियामक ने प्रतिभूति कानूनों के किसी प्रकार के संभावित उल्लंघन की विस्तृत छानबीन की है। इसमें कंपनी संचालन और भेदिया कारोबार नियमों को ध्यान में रखते हुये भी जांच की गई।
अधिकारी ने कहा कि अभी तक मौजूदा प्रावधानों का कोई गंभीर उल्लंघन नहीं पाया गया है। यदि आगे कोई उल्लंघन पाया जाता है तो उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
नियामक का यह भी मानना है कि टाटा-मिस्त्री विवाद ने दिखा दिया है कि एक स्वतं़त्र निदेशक को हटाने के लिये नियमों को और सख्त किये जाने की जरूरत है।
सेबी अपने इस रख को कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ भी साझा करेगा। इसमें यह मुद्दा तब उठा है जब यह देखा गया कि स्वतंत्र निदेशकों की पुन नियुक्ति के नियम पहले से ही काफी सख्त हैं।
सूत्रों ने बताया कि सेबी ने अपनी पिछली बैठक में अपने बोर्ड को टाटा-मिस्त्री से संबंधित घटनाक्रमों का ब्योरा दिया। इसमें स्वतंत्र निदेशकों को हटाने में अनियमितता तथा मानद चेयरमैन के साथ संवेदनशील सूचनाओं को साझा करने के आरोप शामिल हैं।
नियामक ने कहा कि ऐसा समझा जाता है कि जब किसी व्यक्ति को मानद चेयरमैन नियुक्त किया जाता है तो कंपनी का निदेशक मंडल उसके साथ कंपनी के प्रदर्शन, विलय और अधिग्रहण, विनिवेश और अन्य महत्वपूर्ण ब्योरे पर विचार विमर्श कर उनके अनुभव का लाभ उठा सकता है।
सेबी के अनुसार अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील सूचनाओं को ‘वैध उद्देश्य’ के लिए दिया जा सकता है।
सेबी भेदिया कारोबार प्रतिबंध नियमन के तहत अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील सूचनाओं के वैध मकसद से दिए जाने की अनुमति है। ये सूचनाएं किसी वैद्य कार्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से दी जा सकती हैं।
नियामक ने कहा कि जहां तक स्वतंत्र निदेशकों का सवाल है, विचार यह है उनको हटाने के लिए विशेष प्रस्ताव लाया जाना चाहिए जैसा कि उनकी पुन नियुक्ति मामले में होता है।
विशेष प्रस्ताव में 75 फीसदी शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत होती है जबकि साधारण प्रस्ताव में 50 प्रतिशत शेयरधारकों की मंजूरी जरूरी होती है।
सूत्रों ने कहा कि इस बारे में फैसला कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ विचार विमर्श में लिया जाएगा जो कंपनी कानून का क्रियान्वयन कर रहा है। इससे पहले सेबी ने मिस्त्री तथा हटाए गए स्वतंत्र निदेशक नुस्ली वाडिया के पत्र के बाद टाटा समूह की अलग-अलग कंपनियों से इस बारे में ब्योरा मांगा था। दोनों ने कंपनी कामकाज के संचालन के नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया था।