पुरानी कहावत है… अगर आप वक्त के साथ नहीं बदले तो वक्त आपको बदल ही देगा… टाटा मोटर्स पर कई मायनों में यह कहावत सटीक बैठती है। एक समय ऐसा भी था जब सफारी और सूमो जैसी दमदार पेशकशों के दम पर कंपनी ने बाज़ार में लंबे वक्त तक राज किया, लेकिन जब बदलने का वक्त आया तब भी कंपनी ने कोई कदम नहीं उठाए और सालों तक इन्हीं कारों को छोटे-मोटे बदलावों के साथ पेश करती रही, नतीजा ये हुआ कि कंपनी की हिस्सेदारी बाज़ार में एक अंक तक लुढ़क आई। कुछ वक्त पहले तक भी टाटा मोटर्स का पोर्टफोलियो इंडिका, इंडिगो और चर्चित लेकिन असफल नैनो के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा।
इंडिगो की बात करें तो यह पहले फुल साइज़ सेडान हुआ करती थी, जब साल 2006 में भारत सरकार ने चार मीटर से कम लंबी कारों पर एक्साइज़ ड्यूटी घटाने और देश को छोटी कारों के ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर स्थापित करने का फैसला लिया तो इस कदम ने भारतीय ऑटो सेक्टर में एक नई क्रांति ला दी।
टाटा के लिए यह वक्त सबसे आगे रहने का था क्योंकि जब तक बाकी कार कंपनियां इस दिशा में कुछ करतीं वह इंडिगो के बूट को छोटा कर 3998 एमएम लंबाई वाली इंडिगो सीएस के साथ बाज़ार में आ चुकी थी। सेडान मॉडल के मुकाबले 50 हजार रूपए सस्ती इंडिगो सीएस उस वक्त दुनिया की सबसे छोटी सेडान कार थी। इस ने आते ही सेल्स चार्ट में धमाल मचा दिया। हालांकि आज की बात करें तो फरवरी 2017 में इस कार की केवल 462 यूनिट की बिकीं।
अब टाटा मोटर्स एक नए रूप में ग्राहकों के सामने आई है, खासतौर पर टियागो और टीगॉर में तेज़ी से बदलती टाटा की छवि को साफ महसूस किया जा सकता है। ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है इस कार को क्यों न गुड बाय बोल दिया जाए और इसके सफर पर ब्रेक लगा दिए जाएं… ऐसा इसलिए क्योंकि बदलते दौर में यह टाटा की इमेज़ को नुकसान पहुंचाने वाली ही साबित होगी।
आज से पांच-छह साल पीछे की ओर चलें और लोगों से टाटा के बारे में पूछें तो यही जवाब मिलेगा कि टाटा एक ट्रक बनाने वाली कंपनी है जो कुछ कारें भी बनाती है… अब साल 2017 में यही सवाल दोहराएं तो पाएंगे कि जवाब बदल गए हैं, इसी कंपनी को अब नए, आकर्षक डिजायन, अच्छे फीचर्स से लोडेड कारें बनाने वाले ब्रांड के तौर पर जाना जा रहा है।
कॉम्पैक्ट सेगमेंट में आई टीगॉर इसका सबसे मजबूत उदाहरण है, जो प्रमुख तौर पर मारूति की लोकप्रिय पेशकश स्विफ्ट डिज़ायर के अलावा सेगमेंट की बाकी कारों को जाहिर तौर पर नुकसान पहुंचाएगी। वहीं अगर इसी सेगमेंट में इंडिगो की मौजूदगी को देखें तो साफतौर आपके मन में औसत दर्जे के डिजायन, पुराने पड़ चुके इंटीरियर और सीमित फीचर्स वाली कार की तस्वीर उभर आएगी, जो बतौर उभर रहे ब्रांड के तौर पर टाटा के लिए नुकसानदायक ही है, लिहाज़ा हमारा मानना है कि यह वक्त बीते हुए कल (इंडिगो) को गुड बाय बोलकर भविष्य (टीगॉर) पर फोकस करने का है।
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