लंदन। यदि किसी की आंखों में आंसू आने में देर नहीं लगती तो उसे अपना मूड ठीक करने के लिए कोई उदास फिल्म देखकर दिल खोलकर रो लेना चाहिए।
नीदरलैंड के तिलबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने फिल्म के दौरान रोने के भावुक प्रभाव का अध्ययन किया और पाया गया कि तनाव से परेशान लोगों की मनोदशा में फिल्म देखने के दौरान रोने से 90 मिनट में सुधार हुआ।
शोधकर्ताओं ने 60 प्रतिभागियों को 1997 की ऑस्कर विजेता फिल्म ‘लाइफ इज ब्यूटीफुल’, जिसमें एक यहूदी किताब विक्रेता नाजियों के यातना शिविर से अपने बेटे को बचाने की कोशिश करता है और 2009 की ‘लस्से हॉलस्ट्रॉम वीपी हची : ए डॉग्स टेल’, जिसमें रिचर्ड गेरे रेलवे प्लेटफॉर्म पर मिले एक मूर्ख से भावनात्मक तौर पर जुड़ जाते हैं, दिखाई।
फिल्म दिखाने के बाद उन्होंने पाया कि 32 प्रतिभागियों की मनोदशा पर फिल्म का कोई प्रभाव नहीं हुआ क्योंकि वे नहीं रोये थे लेकिन रोने वाले 28 प्रतिभागियों की मनोदशा में बदलाव हुआ। शोधार्थियों के दल के प्रमुख अस्मिर ग्रैकनिन ने कहा कि बिगड़ी मनोदशा रोने के बाद सुधरने में कुछ समय लेती है।
हालांकि बाद में इसमें उत्तरोत्तर सुधार होता जाता है। उल्लेखनीय है कि मनुष्य एकमात्र प्राणी है जो रो सकता है। हालांकि हम आंसू क्यों बहाते हैं इसके बारे में बहुत कम पता चल पाया है। फिल्म के दौरान रोने से मनोदशा पर प्रभाव के ऊपर इससे पहले भी कई शोध किए जा चुके हैं।