सबगुरु न्यूज़ उदयपुर। श्राद्ध पक्ष के खत्म होते ही सांझी का दौर भी खत्म हो गया। श्राद्ध पक्ष में मंदिरों, घरों में पुष्प, पत्तों, रंगीन पन्नों की सांझी बनाई जाती है। कुछ समाजों में घरों के मुख्य द्वार पर दीवारों पर गोबर से भी सांझी बनाई जाती है।
उदयपुर शहर में एक महत्वपूर्ण विधा है जलसांझी, जो जगदीश चौक क्षेत्र के राधावल्लभ मंदिर सहित कुछ अन्य मंदिरों में भी बनाई जाती है। हालांकि, अब इस विधा के कलाकार कम ही हैं, लेकिन हर साल श्राद्ध पक्ष में जलसांझी भगवान के सम्मुख सज ही जाती है। श्राद्ध पक्ष में की सांझी परम्परा में भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन दर्शाया जाता है। यह भी कृष्ण भक्ति का ही एक स्वरूप है।
जल सांझी अपने आप में एक अलग कला है। यह भी दो तरह से बनाई जाती है। एक जल की सतह पर और दूसरी जल के भीतर बर्तन के पेंदे में। जल की सतह पर बड़ी सावधानी से विशेष किस्म के पाउडर से सतह तैयार की जाती है और उसके ऊपर कलाकार अपनी सूक्ष्म कारीगारी से आकृतियों को उकेरते हैं।
इससे ज्यादा कठिन जल के अंदर पेंदे पर सांझी बनाना है। इसके लिए भी विशेष किस्म के पाउडर इस्तेमाल होते हैं जो जल में घुलनशील नहीं होते, लेकिन पेंदे में एक बार जमने के बाद पानी को उस बर्तन में सावधानी से भरना जरूरी होता है, वर्ना सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है।
सांझी बनाने वाले कलाकार राजेश वैष्णव बताते हैं कि स्थानीय तो नहीं, लेकिन विदेशी सैलानी जरूर इस सांझी के प्रति आकर्षित होकर सीखने की भी इच्छा जताते हैं। हालांकि, कुछ दिनों के लिए घूमने आने वाले सैलानी ज्यादा नहीं सीख पाते।