अहंकारी को केवल अहंकार नजर आता है सत्य की परिभाषा उसे कभी समझ नहीं आएगी मनुष्य यानी बुद्धिजीवी बड़ा ही अलग प्राणी है और मनुष्य भिन्न प्रकार की श्रेणी में भी होते हैं| कोई अच्छा सोचने वाले कोई बुरा सोचने वाले लेकिन किसी का अच्छा सोचने वाले भी तो ही कुछ सोच रहे हैं तभी तो वह किसी को अच्छा सोच रहे हैं और किसी का बुरा सोचने वाले भी कुछ बुरा ही सोच रहा हैं तभी तो वह किसी का बुरा सोच रहा हैं|
बात जल्दी से समझने वाली नहीं है लेकिन समझने की जरूरत है जरूरी यह है कि आप अपने जीवन से संतुष्ट हैं या नहीं आपने अपने जीवन में क्या किया क्या नहीं यह सबसे अधिक आप ही जानते हैं ना आपका जीवन साथी ना आपका परिवार ना आपका दोस्त ना आपके माता-पिता और सबसे बड़ी बात ना ही आपके भगवान अब आप सोचेंगे भगवान तो सब कुछ जानते हैं यह मनुष्य की धारणा है अगर यह सच है तो मनुष्य को भगवान से प्रार्थना करते समय केवल यही क्यों सुनने में पड़ता है कि भगवान मैंने कितने अच्छे काम किए हैं तो भी मेरे साथ ऐसा हुआ या भगवान मैंने इतने बुरे काम किए हैं इसलिए मेरे साथ ऐसा हुआ सारा लेखा-जोखा आपके कर्मों पर निर्भर करता है जैसा आप कर्म करते हैं वैसा ही आप भरते हैं|
हालांकि भगवान सब कुछ जानते हैं लेकिन भगवान भी यही चाहते हैं कि सबसे पहले आप अपने कर्म के बारे में सोचें लेकिन आज की दुनिया में लोग अपना कर्म भूल कर धर्म पर चलने लगे हैं जिसकी वजह से पूरी दुनिया में मनुष्य को मनुष्य सही खतरा है, भाई को भाई से खतरा है यह तो एक छोटी सी बात है लेकिन क्या हर मनुष्य इस बात को समझता है? क्या हर मनुष्य यह मानता है कि हमें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए और केवल कर्म पर नहीं वह किस प्रकार का काम कर रहा है उस कर्म पर ध्यान देना चाहिए आखिर इसका फैसला कौन करेगा कि कौन सा कर्म अच्छा है और कौन सा कर्म बुरा जिससे कर्म ही अच्छा होगा जिससे आपके मन को तसल्ली मिली अब बात करेंगे मन की तसल्ली के तो मन की तसल्ली तो गलत कर्म करके भी मिल जाती है लेकिन यह केवल हमारी धारणा होती है असली सुकून तो एक अच्छा कर्म करके ही मिलता है वरना बुरा करने वाले करने वाले को भी कहीं ना कहीं अपने मन में किए गए बुरे कर्म का एहसास जरूर होता है भले ही वह किसी के सामने भी व्यक्त करें या ना करें|
“सत्य की जीत केवल इसलिए नहीं होती कि वह सत्य होता है, बल्कि इसलिए भी होती है क्योंकि वह सही होता है|”