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जरा सोचिए आज से तीस साल पहले की जिन्दगी और आज की जो हम लोग जिन्दगी जी रहे है उसमें क्या अन्तर है। उस समय के खान-पान व रहन-सहन के तरीके में तो आप के समझ में आ जायेगा कि हम आज क्या खो रहे है।
आधुनिकता के चकाचौंध में जहां पर हम ऊचाईयां छू रहे है वही अपने आने वाले पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित व सरल बनाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैंं। लेकिन क्या हम सच में सही कर रहे हैं। हम सिर्फ अपने स्वार्थहित में उस सत्य को नकार रहे हैं और उसी का परिणाम है कि आज हमारे सामने समस्याओं का अंबार लग गया है और हम सब उससे पीछा छुड़ाने को मजबूर हैं और इन समस्याओं के आप और मैं ही नहीं सम्पूर्ण मानव जाति जिम्मेवार हैं।
हालांकि यह सत्य है कि हम लोगों ने काफी तरक्की की है (VIDEO: दो लड़कियाँ कार में बिकनी में घूमती हुई दिखाई दी) लेकिन उसके बदले में हमने हजारों समस्याओं को भी पैदा किया हैं। आज हर बच्चे से लेकर बड़े के पास कोई न कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान आपको मिल जाएगा। इलेक्ट्रॉनिक सामान ने हमारी जिन्दगी तो आसान बनाया लेकिन इसके कई नाकारात्मक प्रभाव भी हमारे सामने उत्पन्न हुए हैं। इलेक्ट्रॉनिक सामानों के स्क्रीन से निकलने वाले हानिकारक रेडि़एशन हमारे शारीरिक विकास को अवरूद्ध करता है और बच्चों के मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है।
छोटे से छोटे बच्चों को कुर्सियों पर बैठाना और स्ट्रैप लगा देना या फिर स्मार्टफोन और टैबलेट खेलने के लिए हाथ में पकड़ा देना, ये सब बच्चों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। मज़ेदार वीडियो वह शारीरिक रुप से मजबूत नहीं हो पाता है और फिर इसका बुरा असर उसके मानसिक प्रभाव पर पड़ता है और इन सबका बाद में बच्चों के जीवन पर बुरा असर पड़ता है।
आज के मां-बाप जीवन की इस आपाधापी में लगातार भागते चले जा रहे हैं,(VIDEO: ईशा अम्बानी का ये वीडियो हो रहा है वायरल) वे घर-परिवार और बच्चों के लिए समय ही नहीं दे पा रहे हैं। वे किड़्स गार्डऩ और ऐसे हीं कई संस्थान हैं जो पैसे लेकर बच्चों की देखभाल करते हैं, उनके भरोसे बच्चों को छोडक़र वे अपने जॉब पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
लेकिन यह परम सत्य है कि एक बच्चे में व्यवहारिक ज्ञान उनके माता-पिता द्वारा ही मिलती है। एक सर्वे में यह बताया है (VIDEO: अंडे खाने से होती है खतरनाक बीमारी) कि एक बच्चे का मानसिक विकास उनके माता-पिता के साथ रहने से ज्यादा होता है और दमाग पर साकारात्मक असर पड़ता है जिससे वह जीवन में एक नई कामयाबी को प्राप्त करता है। कई संस्थानों ने अपने सर्वें में यह बताने का प्रयास किया है कि पांच से दस साल के बच्चों के साथा माता-पिता के रहने पर भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह से स्थायी प्रभाव पड़ता है।
आज कल स्मार्ट फोन और कम्प्यूटर का जमाना है और लगभग हर परिवार में एक न एक स्मार्ट फोन तो आपको मिल हीं जाएगा। बच्चे से दूर रहने वाले मां-बाप स्मार्ट फोन या कम्प्यूटर पर हीं चैट के जरिए बातचीत कर लेते हैं अब ऐसे में एक बच्चे के मानसिक विकास या सामाजिक व्यवहारिक ज्ञान का विकास कैसे हो सकता है।
यह तो वहीं तरीका हो गया कि एक मां ने बच्चे को जन्म तो दिया जरूर लेकिन अपने दूध की जगह बोतल की दूध को पिलाया। अब एक मां के दूध में जो ताकत होगा वह क्या बंद बोतल की दूध में मिल पाएगा।(VIDEO: विराट कोहली ने कहे दी ऐसी बात वो भी सचिन तेंदुलकर को) माना है कि मां का पीला और गाढ़ा दूध हीं बच्चे के संपूर्ण विकास में सहभागी होता है। डॉक्टरों का मानना है कि नवजात बच्चों को चलने-फिरने और नई चीज़ों को जानने का मौका चाहिए होता है|
जिससे उनका समग्र विकास निर्भर होता है और तो और बच्चों में संतुलन, समन्वय और ध्यान जैसी अवधारणां शुरुआती 36 महीनों में ही विकसित होती हैं।(VIDEO: हार्दिक पांड्या ने कर दिखाया कमाल पाकिस्तान के ख़िलाफ़) इसलिए हमें बच्चों के बचपन्न के साथ खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। हम माता-पिता को यह समझना जरूरी है कि जीवन के इस आपाधापी में भागना जरूरी तो है लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरूरी उनके अपने बच्चे के संपूर्ण विकास करना जरूरी है जिससे वह आगे बड़ा होकर बेहतर भविष्य की कल्पना कर सके और आनंददायी जीवन के साथ सम्मान व प्रतिष्ठा की जिन्दगी जी सके।
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