सबगुरु न्यूज-सिरोही। पूरे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में गर्मी ने पिछले दो दिनों से फिर से हाहाकार मचवा दिया है। इसमें भी राजस्थान का तापमान पूरे भारत में चर्चा बना हुआ है, लेकिन इस धधकते हुए राजस्थान में भी एक जगह ऐसी है, जहां सूरज की किरणे भले ही शरीर पर पड़ती हों, चलने-फिरने से थोड़ा पसीना भी आ जाए, लेकिन शरीर की चमड़ी उखाड़ देने वाली आग जैसी गर्मी का अहसास वहां चिलचिलाती धूप में भी नहीं है। यह जगह है राजस्थान का कश्मीर माउण्ट आबू।
शुक्रवार को भी जहां माउण्ट आबू की तलहटी में स्थित आबूरोड, अनादरा, सिरोही और संपूर्ण राजस्थान झुलसा देने वाली लू की चपेट में था, वहीं माउण्ट आबू में भरी दोपहर में भी ठंडी हवा राहत दे रही थी। तो ऐसे में यदि आप मैदान की गर्मी से परेशान हो गए हैं तो अपना समाचार पत्रों की सुर्खियां बने माउण्ट आबू के तापमान से चौंधियाए बिना वहां पर गर्मी में ठंडक का अहसास पा सकते हैं।
38 डिग्री तापमान पर भी दोपहर के डेढ़ बजे माउण्ट आबू के बस स्टैण्ड पर ठंडी हवा जहां राहत देती है, वहीं सवा आबूरोड के तलहटी तिराहे पर आदमी झुलसने का अहसास होता है। शुक्रवार को यहां का तापमान 32 डिग्री सेल्सियस था। वहीं आबूरोड और राज्य के अन्य इलाकों में यह चालीस के पार रहकर झुलसाता रहा।
इसलिए अखबारों की सुर्खियां बने माउण्ट आबू के तापमान को नजरअंदाज करतेे हुए अपना बैग और बेडिंग पैक करके गर्मियों की छुटिटयों के लिए माउण्ट आबू पहुंचने में हिचकिचाने की जरूरत नहीं है।
-ग्रेनेटिक रॉक्स, फिर भी राहत
राजस्थान की अरावली श्रंखला पर स्थित यह क्षेत्र ग्रेनाइट की पहाडिय़ों पर स्थित है। जालोर और सिरोही की तरह यहां पर की पूरी पर्वत श्रंखला ग्रेनाइट की है। ग्रेनाइट की यह खासियत होती है कि वह हीट का रिफ्लेक्शन बहुत ही ज्यादा करता है।
माउण्ट आबू में यही गर्मी रिफ्लेक्ट होकर सीधे वातावरण में चली जाती है, वहीं जालोर, सिरोही और ग्रेनाइट बहुल अन्य इलाकों से इस रेडियेशन से ग्रीन हाउस इफैक्ट के कारण गर्मी झुलसाने लगती है।
-तुरंत वातावरण में रेडिएट हो जाती है गर्मी
दरअसल माउण्ट आबू की समुद्र तल 14 सौ मीटर ऊंचाई पर स्थित है। अरावली पर्वत श्रंखला की सबसे ऊंची चोटी गुरुशिखर भी यहीं पर स्थित है। इसकी ऊंचाई करीब 1722 मीटर है। जैसे-जैसे ऊंचाई पर जाते हैं हवा का घनत्व कम होता है। इस कारण धरती पर पर पडऩे वाली सूर्य की किरणें तुरंत प्रभाव से विकिरणित होकर बिना किसी रुकावट के फिर से वातावरण में मिल जाती है।
वहीं अत्यधिक प्रदूषण के कारण मैदानी इलाकों में कार्बन डाई ऑक्साइड मैदानी इलाकों में हवा का घनत्व बढ़ा देती है। इससे जमीन के ऊपर एक कम्बल बन जाता है जिससे धरती पर पड़ी सूर्य की किरणें इस घनी हवा की परत को पार नहीं कर पाती और जमीन को सुलगाने लगती है। यही कारण है कि 40 डिग्री सेल्सियस पर जहां राजस्थान के मैदानी इलाके धधकने लगते हैं वहीं माउण्ट आबू अब भी इस तापमान पर राहत देता है।
-इनका कहना है…
तापमान चाहे जो हो माउण्ट आबू ऊंचाई पर रहने के कारण हमेशा ठंडा रहेगा। वहां हवा का घनत्व कम होने के कारण जमीन में अवशोषित ऊष्मा विकिरणित होकर बिना रुकावट के फिर से वातावरण में चली जाती है। जबकि मैदानी इलाकों में यह हवा के घनत्व के कारण वातावरण में वापस जल्दी नहीं लौट पाती। यही ग्रीन हाउस इफैक्ट कहलाता है।
डॉ केके शर्मा
भूगर्भशास्त्री, राजकीय महाविद्यालय, सिरोही।