छपरा। पारंपरिक खेलों का प्रचलन धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। कबड्डी, चिक्का, फुटबॉल, गुलीडंडा, डोलपता व अन्य कई प्रकार के खेल गांवों के मैदान से विलुप्त हो गए हैं। इन खेलों से गुलजार रहने वाले मैदान में वर्तमान समय में सन्नाटा पसरा है।
इसका मुख्य कारण पारंपरिक खेलों के प्रति रुचि न होना व नए नए खेलों के प्रति आकर्षित होना माना जा रहा है। पूर्व में चार बजते ही गांव के नवयुवक अपने -अपने स्थानीय खेल के मैदान में भिन्न भिन्न प्रकार के खेल खेलने के लिए एकत्र हो जाया करते थे।
इस दौरान टोली बंद होकर कोई कबड्डी तो कोई चिक्का तो कुछ लोग गुली डंडा का खेल खेलने में मशगुल रहते थे। वहीं फुटबॉल मैच के आयोजन में काफी संख्या में लोग इकट्ठे होकर खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने का काम किया करते थे। लेकिन वर्तमान समय में इन खेलों की जगह पर क्रिकेट ने अपना स्थान बना लिया है।
क्या कहतें हैं जानकार
रिविलगंज के कन्हैया राय का कहना है कि पारंपरिक खेलों से लोगों का शारीरिक व मानसिक विकास हुआ करता था। इसके साथ ही शरीर स्वस्थ व समाज को मजबूती प्रदान करता था।