स्वीडन। इस साल रसायन विज्ञान का नोबेल दुनिया की सबसे छोटी मशीन बनाने के लिए फ्रांस के तीन वैज्ञानिकों रसायन शास्त्री जीन-पियरे सॉवेज, स्कॉटलैंड के सर जे फ्रेजर स्टुडॉर्ट तथा नीदरलैंड्स के एल फेरिंगा को संयुक्त रूप से दिया गया है।
बाल से भी एक हजार गुना छोटी इन आणविक मशीनों का भविष्य में कई तरह से उपयोग हो सकता है। इससे सेंसरों और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों जैसी चीजों के विकास हो सकता है। खास तौर पर इसका प्रयोग कैंसर की लड़ाई में एक बड़ा कदम साबित होगा जहां ये छोटी मशीनें सीधे खराब कोशिकाओं पर हमला करेंगी।
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेंज की ओर से दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी एक बयान के मुताबिक तीनों वैज्ञानिकों ने आणविक मशीनों के विकास और निर्माण पर कार्य किया है।
एक बाल से भी हजार गुणा छोटी यह नैनोमीटर आकार की संरचना है। यह रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक बल व गति में बदल सकती है। तीनों को संयुक्त रूप से पुरस्कार राशि 9.33 लाख डॉलर (6.21 करोड़ रुपये) मिलेगा।
पुरस्कारों का एेलान करते हुए ज्यूरी ने उदाहरण देते हुए कहा कि आणविक मोटर का विकास इतिहास में वही स्थान है जो 1830 के दशक में इलेक्ट्रिक मोटर का था। तब वैज्ञानिकों ने चक्कों और कील से घुमने वाले पहियों का विकास किया था।
उस समय वे इस बात से अनजान थे कि आगे चलकर उनकी खोजें इलेक्ट्रिक ट्रेनों, वॉशिंग मशीनों, पंखों और खाद्य प्रोसेसरों के विकास का आधार बनेंगी।
सॉवेज ने 1983 में आणविक मशीन बनाने की दिशा में काम शुरु किया था। वह एक चेन या श्रृंखला बनाने के लिए दो गोल आकार के अणुओं (परमाणुओं की श्रृंखला) को एकसाथ जोड़ने में कामयाब हो गए थे।
आम तौर पर अणु मजबूती से जुडे़ होते हैं, जिसमें परमाणु इलेक्ट्रॉनों की भागीदारी करते हैं लेकिन चेन में यह मजबूत बंधन टूट जाता है। नोबेल समिति ने कहा कि एक मशीन के किसी काम को पूरा करने के लिए जरूरी है कि उसमें ऐसे पूर्जे हों जो एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ सकें। आपस में बंधी दो गोल चीजें इस जरूरत को पूरा करती हैं।
सॉवेज स्ट्रासबर्ग युनिवर्सिटी में, स्टुडॉर्ट अमरीका के नॉर्थवेस्टर्न युनिवर्सिटी में तथा फेरिंगा रॉयल नीदरलैंड्स एकेडमी ऑफ साइंसेज में कार्यरत हैं।
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