अजमेर। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज एवं सज्जादानशीन प्रमुख दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली ने कहा है कि एक बार में तीन तलाक का तरीका आज के समय में अप्रासंगिक ही नहीं, खुद पवित्र कुरान की भावनाओं के विपरीत भी है। निकाह जब दो परिवारों की उपस्थिति में होता है तो तलाक एकांत में क्यों।
यहां सालाना उर्स के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में दरगाह दीवान ने इस्लामी शरीयत के हवाले से कहा कि इस्लाम में शादी दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक करार माना गया है। इस करार की साफ-साफ शर्तें निकाहनामा में दर्ज होनी चाहिए।
क्षणिक भावावेश से बचने के लिए तीन तलाक के बीच समय का थोड़ा-थोड़ा अंतराल जरूर होना चाहिए। यह भी देखना होगा कि जब निकाह लड़के और लड़की दोनों की रजामंदी से होता है, तो तलाक मामले में कम से कम स्त्री के साथ विस्तृत संवाद भी निश्चित तौर पर शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को तलाक सख्त नापसंद है। कुरान की आयतों में साफ दर्शाया गया है कि अगर तलाक होना ही हो तो उसका तरीका हमेशा न्यायिक एवं शरई हो।
कुरान की आयतों में कहा गया है कि अगर पति-पत्नी में क्लेश हो तो उसे बातचीत के द्वारा सुलझाने की कोशिश करें। जरूरत पडऩे पर समाधान के लिए दोनों परिवारों से एक-एक मध्यस्थ भी नियुक्त करें। समाधान की यह कोशिश कम से कम 90 दिनों तक होनी चाहिए।
दरगाह दीवान ने कहा कि कुरान ने समाज में स्त्रियों की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे प्रावधान किए हैं। तलाक के मामले में भी इतनी बंदिशें लगाई गई हैं कि अपनी बीवी को तलाक देने के पहले मर्दों को सौ बार सोचना पड़े।
उन्होंने कहा कि कुरान में तलाक को न करने लायक काम बताते हुए इसकी प्रक्रिया को कठिन बनाया गया है, जिसमें रिश्ते को बचाने की आखरी दम तक कोशिश, पति-पत्नी के बीच संवाद, दोनों के परिवारों के बीच बातचीत और सुलह की कोशिशें और तलाक की इस पूरी प्रक्रिया को एक समय-सीमा में बांधना शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि कुरान कहता है कि तीनों तलाक कहने के लिए एक एक महीने का वक्त लिया जाना चाहिए, कुरान एक बार में तीन तलाक कहने की परंपरा को जायज नहीं मानता है। आज हर देशवासी की तरह आम मुसलमान भी शिक्षा, रोजगार, तरक्की एवं खुशहाली चाहता है। मुस्लिम लड़कियां पढऩा और आगे बढऩा चाहती हैं।
मुस्लिम महिलाएं भी सिर उठाकर स्वाभिमान के साथ अपने घर और समाज में जीना चाहती हैं वे अपने कुरान एवं संविधान सम्मत दोनों ही अधिकार चाहती हैं। गैर शरई तलाक प्रक्रिया महिलाओं के स्वाभिमान को ठेस पहुचाने वाला कृत्य है। सालाना कार्यक्रम मेंं पारंपरिक आयोजन में देश प्रमुख चिश्तियां दरगाहों के प्रमुख मौजूद थे।