सबगुरु न्यूज। एक पखवाडा और दो दो चौंकाने वाले मुद्दे। इन घटनाओं से लोगों का आश्चर्य इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने सुबह सूर्य दर्शन के लिए अपनी आँख पूर्व की ओर खोली। और सूरज को पश्चिम में उगा हुआ पाया। इन दोनों आश्चर्यजनक घटनाओं का अचम्भा सोशल मीडिया पर स्पष्ट दिखता है।
पहली घटना थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टाउनहाल में गौ रक्षकों में नकली गौ रक्षक ढूंढने वाली बात कहना। राज्यों को इनके खिलाफ डोजियर तैयार करने तक को कह देना। प्रधानमंत्री यही नहीं रुके उन्होंने दूसरे ही दिन तेलंगाना में नकली गौ रक्षकों पर अपने शब्दबाण यहाँ भी छोड़ दिए।
गौ वत्सल के रूप में पूजे जाने वाले प्रधानमंत्री के श्रीमुख से अपने लिए ऐसे शब्द सुनकर जैसे सोशल मीडिया पर छाए कथित गोरक्षकों को फालिस मार गया। श्रीमुख इसलिए कि इस बयान से पूर्व कथित गौ रक्षकों के लिए इन्ही प्रधानमंत्री के कहे वाक्य भगवत वचन हुआ करते थे।
उना काण्ड के बाद प्रधानमंत्री की कथित गौ रक्षकों के प्रति इस तरह की टिपण्णी से ये महिमामंडन गुनगुनाना भूल गए। sabguru.com । इतने खौवाये कि प्रधानमंत्री के भाषण के तुरंत बाद ही, गो वत्सल कहने वाले कथित गो रक्षक सोशल मीडिया पर उन्हें 2019 में हिमालय भेजने की भी बात करने लगे।
अब आइये दूसरे आश्चर्य पर। ये आज ही मिला। कोंग्रेस की तरफ से। राजस्थान में हिंगौनिया गोशाला में सैंकड़ों गायों की मौत के बाद राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के आह्वान पर गाय बचाओ पैदल मार्च निकलने की। ये सूचना सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो लोग वैसे ही चैंके जैसे प्रधानमंत्री के मुंह से गौ भक्तों के लिए सुनकर चैंक थे।
आम तौर पर ये आरोप लगता रहा है कि कांग्रेस ने गायों के लिए आजादी से लेकर आज तक कुछ नहीं किया। वैसे सार्वजनिक रूप से कांग्रेस ने शायद ही आजादी के बाद गायों के लिए संवेदना दिखाने के लिए कोई प्रदर्शन किया हो। ये बात अलग है कि कांग्रेस के इंदिरा कांग्रेस यानि कि कांग्रेस-आई बनने से पहले उसका चुनाव चिन्ह गाय बछडा ही था।
दोनों घटनाएं आश्चर्यजनक है। क्योंकि जो पार्टियां अब तक देश और दुनिया में जिस तासीर के लिए जानी जा रही थी उनके दो बड़े नेताओं ने उस तासीर के विपरीत काम किया। अब सवाल ये कि प्रधान मंत्री और कांग्रेस के राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष के ये बयान और प्रदर्शन कोई राजनितिक हथकंडा नहीं है। वैसे राजनितिक बयां यही आएंगे कि ऐसा नहीं है।
तो दो सवाल महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यदि ऐसा नहीं था तो प्रधानमंत्री ने ये बयान उना की घटना से स्वप्रेरित दलित आंदोलन के बाद ही क्यों दी। दो साल में गाय के नाम पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी जैसे कई बड़े कांड होने पर क्यों नहीं दी। उत्तर प्रदेश चुनाव में दलित वोट बैंक खिसकने का डर नहीं होता तो क्या वो ये बयान देते।
वहीँ कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के लिए भी एक महत्वपूर्ण सवाल है। यदि उन्हें गायों कि इतनी ही चिता थी तो उनकी उनकी पार्टी ने ये मार्च उस समय क्यों नहीं निकाला जब देश के पहले गोपालन मंत्री के प्रभार वाले सिरोही जिले की सरूपगंज गौशाला में 300 से ज्यादा गायें दो साल पहले बारिश के मौसम में इसी तरह मर गयी थीं।
वोटों के लिए दोनों की रणनीति सही हैं कम से कम लोगों में ये सन्देश तो जाएगा कि भाजपा के लिए दलितों और इंसानों का महत्त्व है और कांग्रेस के लिए गाय का। ये संदेश जाये या नहीं जाये पर पार्टी के नेताओं का अंधानुकरण करके पालना करने वाले कथित कार्यकर्ताओं में ये सन्देश तो जरूर चला जायेगा कि वोट बैंक के लिए उनकी पार्टी के बड़े नेता उनके अरमानो और उनकी बलि चढ़ाने से भी नहीं चूकेंगे। वैसे दोनों के इन निर्णयों का कितना फायदा होगा ये आने वाले ढाई साल में पता चल जाना है। विशेषकर अगले साल होने वाले गुजरात और उत्तर प्रदेश के चुनावों में।
-परीक्षित मिश्रा