नई दिल्ली/ब्रसेल्स। अपने तीन देशों की यात्रा के दूसरे पड़ाव वाशिंगटन जाने से कुछ घंटे पूर्व प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ और बड़ी शक्तियों को आतंकवाद पर दोहरे मापदंडों के लिए आड़े हाथों लिया और कहा यदि इस भयंकर संकट को रोकने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं लिए गए तो संयुक्त राष्ट्र संघ निष्फल हो सकता है।
बेल्जियम में अपने अंतिम कार्यक्रम में भारतीय समुदाय को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ अभी तक आतंकवाद की परिभाषा तक नहीं बन सका है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद नए युग की नई चुनौती है जो मानवता के लिए घातक है।
इस समस्या को आंकने में भी विश्व का इतना बड़ा संगठन अपना दायित्व नहीं निभा पा रहा है। प्रधान मंत्री ने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि भारत आतंकवाद के सामने झुका नहीं और झुकने का सवाल ही नहीं उठता।
भारत ने सालों से संयुक्त राष्ट्र से एक प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया है जिसमे परिभाषित किया जाए कि कौन आतंकवादी है, कौन आतंकवादी देश है, कौन आतंकवादियों की मदद करते हैं, कौन आतंवादियों का समर्थन करते हैं, कौन सी बातें हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं। यह सब एक बार लिखित में आ जाएगा तो लोग उससे जुड़ने से डरना शुरू कर जाएंगे।
उन्होंने कहा कि वह नहीं जानते कि संयुक्त राष्ट्र कब और कैसे करेगा परन्तु जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं, उससे लगता है कि अगर अभी भी नहीं चेते तो संयुक्त राष्ट्र संघ को भी निष्फल होते हुए देर नहीं लगेगी।
प्रधान मंत्री ने आगाह किया कि यदि समय के साथ चलना है, चुनौतियों को समझना है और 21वीं सदी को सुख, शांति और चैन की जिंदगी जीने के लिए तैयार करना है तो विश्व के नेतृत्व को भी ज़िम्मेदारियाँ उठानी पड़ेंगी और जितनी देर होगी उतना अधिक नुकसान होगा।
प्रधान मंत्री ने कहा कि आतंकवाद जितना भयंकर है उससे ज़्यादा चिंता इस बात की हो रही है कि इतने बड़े संकट और हजारों निर्दोष लोगों की मौत के बावजूद दुनिया इस विकराल रूप को नहीं पहचान पा रही है। इसका कारण मानवतावादी शक्तियों में बिखराव नजर आता है।
कभी ‘गुड टेररिज्म, बैड टेररिज्म’ जाने-अनजाने में आतंकवाद को एक अलग प्रकार की ताकत पहुंचाता है। इसलिए समय की मांग है कि दुनिया इस आतंकवाद की भयानकता को समझे।
उन्होंने कहा कि भारत 40 साल से आतंकवाद के कारण परेशान है। युद्ध में भारत ने जितने जवानों को नहीं गंवाया, उससे ज्यादा जवान आतंकवादियों की गोलियों से शहीद हुए हैं।
भारत जब चीख-चीख कर दुनिया को कहता था कि आतंकवाद निर्दोषों के जीवन का दुश्मन बन चुका है तो दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकतें भारत को समझाती थीं कि ये आतंकवाद नहीं है ये तो आपके कानून और व्यवस्था की समस्या है। जब ‘धरती पैरों के नीचे से हिलने लगी’ तब दुनिया को पता चला कि आतंकवाद क्या होता है।
मोदी ने कहा कि 9/11 ने दुनिया को झकझोर दिया, तब तक दुनिया यह मानने को तैयार नहीं थी कि भारत कितने बड़े संकट को झेल रहा है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ मुकाबला एक बहुत बड़ी चुनौती है। उन्होंने दुनिया के कई वरिष्ठ नेताओं से और अलग-अलग सम्प्रदायों से जुड़े हुए नेताओं से बात की और उनको समझाया कि आतंकवाद को धर्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए, कोई धर्म आतंकवाद नहीं सिखाता है।
पिछले दिनों भारत में सूफी इस्लामी विद्वानों का एक बहुत बड़ा समारोह हुआ। दुनिया के कई देश के इस्लामी विद्वान आए थे। उन्होंने भी एक स्वर से कहा कि आतंकवादी जो इस्लाम की बात करते हैं वो इस्लाम नहीं है, ये तो गैर इस्लामी बातें करते हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ बम, बंदूक और पिस्तौल से आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज में आतंकवाद के खिलाफ एक माहौल पैदा करना पड़ेगा। यह देश का दुर्भाग्य है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के पास सब चीज लिखी पड़ी मिलेगी कि युद्ध क्या होता है, युद्ध में किसे क्या करना चाहिए, युद्ध से क्या संकट होते हैं, युद्ध को रोकने के क्या तरीके होते हैं। इस सबके बावजूद अभी संयुक्त राष्ट्र संघ को भी नहीं पता है कि आतंकवाद क्या होता है और कैसे वहां पहुंचा जाए और कैसे निकला जाए। दरअसल उनका जन्म युद्ध की भयानकता से हुआ और इसलिए वे युद्ध के दायरे के बाहर सोच नहीं पा रहे हैं।