नई दिल्ली। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बुधवार को भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई वाली राज्य सरकारों को दिल्ली की शिक्षा ‘क्रांति’ से मुकाबला करने की चुनौती दी। उन्होंने भाजपा शासित एमसीडी को भी अपने स्कूलों की तुलना दिल्ली सरकार के स्कूलों से करने की चुनौती दी।
उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में हमारी सरकार के किए कामों से प्रतिस्पर्धा करें। आज से शुरू करें और दो साल बाद तुलना करें। यह प्रतिस्पर्धा देश के बच्चों के लिए अच्छी साबित होगी, उन्हें अच्छे स्कूल मिलेंगे।
राज्य के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने 24 नवंबर को कहा था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शिक्षा के सुधार के अपने चुनावी वादे को पूरा करने में असफल रहे हैं, जबकि कांग्रेस की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अजय माकन ने भी दिल्ली सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि छात्रों की संख्या और उनके परिणाम पिछले तीन वर्षों में काफी नीचे गए हैं।
सिसोदिया ने बुधवार को जवाबी हमला करते हुए कहा कि भाजपा एवं कांग्रेस के नेतृत्व वाले राज्यों में सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है और निजी स्कूलों की संख्या बढ़ रही है।
सिसोदिया ने कहा कि मैं इसकी सराहना करता हूं कि वे नेता शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे हैं जो हमेशा ‘श्मशान’ और ‘कब्रिस्तान’ के मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ‘शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी नहीं किया’ और निजी स्कूल को बढ़ावा दिया।
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के हवाले से उन्होंने कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दो वर्षो के कार्यकाल के दौरान 10वीं पास करने के बाद 12वीं तक पढ़ाई पूरी ना कर पाने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है।
सिसोदिया ने कहा कि 2013-14 में 62,158 बच्चे 10वीं तक पढ़ने के बाद 12वीं की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा घटकर 18,405 तक आ गया।
उन्होंने स्कूल में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए किए गए खर्च में वृद्धि पर कहा कि 2012-13 में सरकार ने इस पर 210 करोड़ रुपए खर्च किए थे जो 2016-17 में उनकी सरकार में बढ़कर 1,229 करोड़ रुपए हो गए।
सिसोदिया ने कहा कि हमने दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे काम के तरीके में बदलाव किया है। जो स्कूल जीर्ण हो चुके थे, वहां हर साल सफाई की जाती है और पीने के पानी एवं स्वच्छता का भी ध्यान रखा गया है।
सिसोदिया ने कहा कि चार-पांच साल पहले जब हमने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात करना शुरू किया तो राजनीतिक संवाद जाति, धर्म से भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर स्थानांतरित हो गया। मुझे यकीन है कि आने वाले वर्षों में शिक्षा राष्ट्रीय राजनीति में एक विषय बनेगी।