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Untold Story : Jamai Pada village where live only son in law in jamshedpur
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Untold Story : जमाई पाड़ा गांव : जहां सिर्फ दामाद रहते हैं

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Untold Story : जमाई पाड़ा गांव : जहां सिर्फ दामाद रहते हैं
Jamai Pada village where live only son in law in jamshedpur
Jamai Pada village where live only son in law in jamshedpur
Jamai Pada village where live only son in law in jamshedpur

जमशेदपुर। सुनकर यकीन नहीं होगा, पर यह सच है। आदित्यपुर के जमाई पाड़ा गांव में रहनेवाले अधिकतर लोग दामाद हैं। इस वजह से इसका नाम दामादों का गांव यानि जमाईपाड़ा पड़ गया है।

यह गांव शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर आदित्यपुर के आरआईटी थाना क्षेत्र के आसंगी मौजा में है। यहां रहने वाले अधिकतर लोग दामाद है।

हालाकि यहां जो भी दामाद हैं सभी अब बुजुर्ग हो गए हैं। उनके नाती-पोते भी हैं। लेकिन वे सब यहां हंसी-खुशी से रहते हैं।

इस गांव का यह नाम क्यों पड़ा इस बाबत ग्रामीणों ने बताया कि 60 के दशक में यहां आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण हुआ था। इस दौरान कई कंपनियों का निर्माण हुआ तो कंपनी में काम करने के लिए लोगो की जरुरत पड़ी।

चूंकि आषंगी गांव आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के बगल में था इसलिए यहां के लोगों की हर कंपनी में अच्छी पकड़ थी। तो उनलोगों ने जब अपनी बेटी की शादी की तो उनके दामाद उस समय खेती पर निर्भऱ थे।

बेटी से प्रेम के कारण इनलोगों ने अपने दामाद और बेटी को शादी के बाद वापस बुला लिया और दामाद को नौकरी आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में दिला दी।

इसके बाद गांव के बाहर ही जमीन देकर उन लोगों को बसा दिया गया और उसका नाम जमाई पाड़ा रख दिया गया।

दामाद को ओड़िया जाति मे जमाई कहा जाता है और स्थान को पाड़ा के नाम से जाना जाता है दोनों को मिला दिया जाए तो वह हो जाती है दामाद के रहने की जगह। इस वजह से गांव का नाम जमाई पाड़ा हो गया।

जमाई पाड़ा में लगभग 50 घर हैं और जनसंख्या 400 के करीब है। अब तो यहां के कई जमाई नाती-पोते वाले हो गये हैं। आसंगी मौजा मे अधिकत्तर प्रधान जाति के लोग निवास करते हैं।

सभी लोग उड़िया होने के कारण यहां के लोग अपनी बेटे-बेटियों का विवाह ओड़िसा में कराते थे। इस कारण यहां जितने भी दमाद है वे सभी ओड़िसा का रहने वाले हैं।

हालांकि 35-40 वर्षाे रहने के कारण दामाद भी अपने आप को यहीं का निवासी मानने लगे हैं। हालांकि इनकी बोलचाल की भाषा उड़िया है।

यहां रहने वाले और मूल रुप से उड़ीसा के मयूरगंज जिले के निवासी परमेश्वर बारीक़ ने कहा कि उनकी शादी वर्ष 1984 में आदित्यपुर के असंगी गांव की गीता से हुई।

खेती-बाड़ी मे उतनी आमदनी नहीं होने के कारण उनके ससुर ने उन्हें यहां बुला लिया और आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र मैं नौकरी लगा दी। इसके अलावा रहने के लिए जमीन दे दी। आज मैं आपने बेटा और बहू के साथ ख़ुशी-ख़ुशी जीवन बिता रहा हूं।

वहीं दूसरे दमाद विश्वनाथ प्रधान ने भी कहा कि इनके ससुर ने भी उन्हें इसलिए यहां बुला लिया कि उनकी बेटी दमाद यहां रहे और खुशी-खुशी जीवन बिताएं।

वहीं विश्वनाथ प्रधान ने बताया कि उसके पिता भी इस गांव के दामाद है। और वह भी यहीं आकर बसे हैं। ग्रामीण सत्यनारायण प्रसाद साहू ने बताया कि चूंकि बेटी से उन लोगों का बेहद लगाव था। इसलिए हमने बेटी ब्याहने के बाद दामाद को यहां बुला लिया।

यहां उस समय छोटी-बड़ी लगभग 900 से भी अधिक कंपनियां थी। इसलिए उन्हें रहने की जगह तो दी ही साथ ही नौकरी भी लगा दी। ऐसा ही काम गांव के और भी लोग करने लगे और धीरे-धीरे यह गांव जमाई पाड़ा बन गया।