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तीर्थ गुरु पुष्कर राज की महिमा - Sabguru News
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तीर्थ गुरु पुष्कर राज की महिमा

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तीर्थ गुरु पुष्कर राज की महिमा

सबगुरु न्यूज। सब तीर्थों के गुरु पुष्कर ही हैं। पुष्कर शब्द कमल, सरोवर, जल, सारस, विष्णु, शंकर, हाथी की सूंड, ओम की कूट बाघ, मेघों का अधिपति विशेष वरूण पुत्र आदि अर्थो में चरितार्थ है।

यहां पुष्कर शब्द जलयुक्त सरोवर से है। पद्म पुराण के अनुसार सृष्टिकर्ता जगत पिता ब्रहमाजी द्वारा निर्मित तीर्थ होने से यह गुरू तीर्थ है और पुष्कर राज का अर्थ है स्वच्छ जल युक्त सरोवर।

आदि काल सत युग में ब्रह्माजी ने कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिन यज्ञ किया था। सृष्टि के सभी देव दानव यहां यज्ञ में भाग लेने आए थे।

लोक मान्यता के अनुसार ब्रह्माजी की धर्म पत्नी सावित्री यज्ञ मुहूर्त के समय तक नहीं आई। ऐसे में एक कन्या से गन्धर्व विवाह कर गाय से शुद्ध किया व उसका नाम गायत्री रख दिया।

ब्रह्माजी के मंदिर मे आज भी उनके साथ गायत्री ही विराजमान है। इस घटनाक्रम के बाद सावित्री ने रुष्ट होकर सभी देवताओं ओर अपने पुत्र नारदजी को कठोर श्राप दिया तथा अपने पति ब्रह्माजी को भी श्राप देकर सावित्री पहाड़ी पर बैठ तपस्या मे लीन हो गईं।

पद्म पुराण, स्कन्दपुराण, नारद पुराण तथा उप नृसिंह पुराण में भी इस पुष्कर तीर्थ को पुष्कराअरण्य बताया है। इस पावन भूमि पर प्राचीन ऋषि मुनियों ने यहां तप कर कई सिद्धियों को हासिल किया और जगत कल्याण के कार्य किए।

प्रयाग तीर्थों का राजा हैं। देव दानी तीर्थों की नानी है तथा पुष्कर तीर्थों का गुरू है। कार्तिक मास की शुक्ल ग्यारस से पूर्णिमा तक पुष्कर स्थापना हुई जगत पिता ब्रहमाजी के यज्ञ के साथ। इसलिए आज तक यहा कार्तिक मास में मेला हर वर्ष लगता है।

पुलस्त्य जी-भीष्म जी को बताते हैं

ब्रह्माजी की आध्यात्मिक भक्ति दो प्रकार की मानी गई है एक सांख्यज और दूसरी योगज। प्रधान आदि अर्थात मूल प्रकृति के प्राकृत तत्व संख्या मे चौबीस है। वे सब के सब जड व भोग्य हैं।उनका भोक्ता पुरूष पच्चीसवां तत्व है, वह चेतन है। इस प्रकार संख्यापूर्वक प्रकृति और पुरूष के तत्व को ठीक ठीक जानना सांख्यज भक्ति है।

सतपुरूषों ने इसे सांख्य शास्त्र के अनुसार आध्यात्मिक भक्ति माना है। प्रतिदिन प्राणायाम पूर्वक ध्यान लगाना, इन्द्रियों का संयम करना और समस्त इन्द्रियों को विषयों की ओर से खींचकर ह्रदय मे धारण करना तथा ब्रह्माजी का ध्यान लगाना योग जन्य मानस सिद्धि है। यही ब्रह्माजी के प्रति होने वाली परा भक्ति है।

पुष्कर तीर्थ में जब ब्रह्माजी का यज्ञ प्रारम्भ हुआ, उस समय ऋषियों ने सन्तुष्ट होकर सरस्वती का सुप्रभा नाम से आवाह्न किया। पितामह का सम्मान करती हुई वह वेगशालिनी सरस्वती पुष्कर तीर्थ में ब्रह्माजी की सेवा तथा मुनियों की प्रसन्नता के लिए प्रकट हुई। पुष्कर तीर्थ में सरस्वती नदी अपनी पांच प्रसिद्ध धाराओं में प्रवाहित होती है यथा सुप्रभा, कांचना, प्राची, नन्दा ओर विशाला।

मान्यता के अनुसार सरस्वती तीर्थ मे तिलभर स्वर्ण दान किया जाता है तो बडा पुण्य मिलता है। पूर्वकाल में स्वयं प्रजापति ब्रह्माजी ने कहा था कि जो मनुष्य उस तीर्थ में श्राद्ध करेंगे, वे अपने कुल की इक्कीस पीढियों के साथ स्वर्ग में जाएंगे।

वह तीर्थ पितरों को बहुत प्रिय है, वहां एक पिण्ड देने से उन्हें पूर्ण तृप्ति हो जाती है। वे पुष्कर तीर्थ द्वारा उद्धार पा कर ब्रह्म लोक मे पधारते हैं। फिर उन्हें अन्न भोगों की इच्छा नहीं होती। वे मोक्ष मार्ग में चले जाते हैं।

सौजन्य : भंवरलाल