रायबरेली। सत्ता में बने रहने के लिये कुछ भी करेंगे या फिर हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी लें डूबेंगे जैसी कहावत रायबरेली संसदीय सीट की छह विधान सभाओं के लिए होने वाले चुनाव में सही होती साबित दिख रही है। क्योंकि यहां पर कांग्रेस-सपा द्वारा किया गया गठबंधन परवान नहीं चढ़ पा रहा है।
रायबरेली की जनता का कांग्रेस से हमेशा लगाव रहा है। उसका यह लगाव कांग्रेस के नेताओं व प्रत्याशियों की अनदेखी के चलते अब विपरीत दिशा की ओर जाता दिखाई देने लगा है। इसमें कांग्रेस-सपा का गठबंधन आम मतदाता को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है क्योंकि बीते पाॅच साल कांग्रेसियों ने सपा के कार्याें के खिलाफ कई बार धरना-प्रदर्शन किया।
चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री की भी घोषणा कर दी और एक बड़ा नारा दिया कि 27 साल यूपी बेहाल जो रायबरेली की जनता को रास आया, लेकिन चुनाव के ऐन वक्त पर कांग्रेस का सपा के साथ गठजोड़ कर लेना मतदाताओं को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।
आम मतदाता की स्थिति यह है कि वह क्या करें और क्या न करे। क्योंकि प्रत्याशी मतदाताओं के साथ लुभावने वादे तो कर रहे हैं लेकिन उनका हश्र क्या होगा यह जनता अब बखूबी जान चुकी है। इसलिये वह अब कांग्रेस पर किसी भी तरह का विश्वास करने से डर रही है।
रही बात सपा प्रत्याशियों की तो गठबंधन के बावजूद दोनों दलों के प्रत्याशियों का चुनाव मैदान में आमने-सामने होना यह साबित करता है कि रायबरेली में गठबंधन का कोई मतलब नहीं है।
हां सपा-कांग्रेस के नेता रायबरेली की जनता को अब ज्यादा मूर्ख नहीं बना सकते क्योंकि यहां की जनता ने कांग्रेस व सपा के प्रत्याशियों को इससे पूर्व पूरा अवसर दिया लेकिन बदले में जनता को जो मिला वह सामने है और कुछेक लोगों की बात छोड़ दे तो आम जनता का बुरा हाल है। जनता की नजरों में इनके जनप्रतिनिधि खरे साबित नहीं हुए।
कांग्रेस व सपा के वरिष्ठ नेता भी दोनों दलों के प्रत्याशियों के प्रचार में आए लेकिन उन्होंने यहां पर गठबंधन केे प्रत्याशी को जिताने की बात न करके अपने पार्टी के प्रत्याशी को जिताने की बात कही। जो जनता के गले नहीं उतर रही। रायबरेली की जनता कांग्रेस द्वारा किए गए इस गठबध्ंन को अपने साथ किया गया विश्वासघात मानती है।
यही नहीं टिकट वितरण में की गई मनमानी का प्रभाव भी इस बार चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। कुछ लोग तो टिकट न मिलने पर दूसरे दलों में शामिल होकर कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त हमला भी कर रहे हैं।
ऐसे में जिले में कांग्रेस व सपा द्वारा किया गया गठबंधन परवान नहीं चढ़ सका। जिसका प्रभाव इस विधान सभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। फिलहाल प्रत्याशियों से अधिक मतदाता इस बार मतदान करने के लिए आतुर दिख रहे हैं। इसके चलते यदि अप्रत्याशित परिणाम सामने आये तो इसमें भी आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी।