जयपुर। राजस्थान में सोमवार को दंड विधियां संशोधन विधेयक को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ। विधानसभा के बाहर और अंदर सरकार को विपक्ष के प्रहारों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के साथ ही विभिन्न गैर सरकारी संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
कांग्रेस के विधायक लोकसेवकों को बचाने के लिए लाए जा रहे बिल के विरोध में मुंह पर काली पट्टी बांधकर विधानसभा पहुंचे है। कांग्रेस विधायकों का कहना है यह एक काला कानून है जिसे किसी भी हाल में पास नहीं होने दिया जाएगा।
विधानसभा पहुंचे सरकार के कई मंत्रियों ने दोहराया कि यह बिल भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए नहीं अपितु ईमानदार लोकसेवकों को झूठे मुकदमों में फंसने से रोकने के लिए है।
विधानसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद राज्यपाल को ज्ञापन देने जा रहे कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने ज्योति नगर तिराहे से हिरासत में ले लिया। प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट सहित कांग्रेस नेताओं को पुलिस ने बस बैठाकर दूसरे स्थान पर छोड़ दिया।
पायलट ने विरोध-प्रदर्शन के दौरान उपस्थित कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि भाजपा सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपी लोकसेवकों को संरक्षण देने के उद्देश्य से सी.आर.पी.सी., 1973 एवं आई.पी.सी., 1860 में संशोधन कर ‘दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017’ लाया गया था जिसे आज विधानसभा के पटल पर कानूनी रूप देने के लिए सरकार द्वारा विधेयक के रूप में पेश किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश के विधेयक के रूप में कानून में परिवर्तित हो जाने से प्रशासनिक स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को संरक्षण मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश के माध्यम से भाजपा सरकार ऐसे प्रावधान लागू करना चाहती है जिससे कि भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारियों के खिलाफ तब तक कोई कार्यवाही ना हो जब तक कि सम्बन्धित विभाग द्वारा अभियोजन स्वीकृति ना दी जाए।
साथ ही इस्तगासों के माध्यम से भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना हो इसे सुनिश्चित किया जाएगा, जो न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन है तथा मीडिया के द्वारा ऐसे व्यक्तियों की सूचना भी सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी और सार्वजनिक किए जाने पर दो वर्ष का दण्डात्मक कार्रवाई का प्रावधान रखा गया है जो मीडिया के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने जैसा है और निष्पक्ष पत्रकारिता के सिद्धांत को बाधित करने वाला है। उन्होंने कहा कि इससे साफ पता चलता है कि भाजपा सरकार भ्रष्टाचार को संस्थागत करने के प्रावधान को कानूनी रूप दे रही है।
विधेयक को लेकर गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सदन में दंड विधियां संशोधन विधेयक पर सरकार विपक्ष की बात सुनना चाहती है, जो भी कमियां, खामियां हैं उसे दूर करेंगे। लेकिन विधेयक को सदन की मेज पर तो आने दो। निर्दलीय विधायक माणकचंद सुराणा ने कहा कि दंड विधियां संशोधन विधेयक 2017 जो सदन में प्रस्तुत किया गया है। यह केन्द्रीय कानून और आइपीसी दोनों को संशोधित करता है।
यह संविधान में माना हुआ सिद्धांत है कि केन्द्रीय कानून को संशोधित करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति इस विधेयक के साथ होनी चाहिए। जो विधेकय हमें सर्कुलेट किया गया है, इसके साथ कल रात तक इसके जारी होने के कारण भी हमें नहीं भेजे गए थे। और मूल बात यह है कि इस विधेयक साथ राष्ट्रपति की अनुमति नहीं हैं। इस विधेयक को लाने के लिए किसने इन्हें सलाह दी और गृहमंत्री को किसने प्रेरित किया यह बहुत दुखद है।
भारतीय जनता पार्टी यह ध्यान रखे कि चुनाव में अब एक साल बचा है। और यह जनसेवकों और जजों की रक्षा के लिए है। हम विधायक नहीं चाहते है कि हमारी रक्षा आप करें। यदि हम कोई भ्रष्टाचार करते हैं तो उसे उजागर होने दीजिए।
जब से सीआरपीसी बनी है जजों को यह अधिकार है कि वह जनहित के मुद्दोंव पर संज्ञान ले सकते हैं। पिछले 70-80 साल में आसमान नहीं गिरा तो अब क्या हो जाएगा। आपातकाल के लिए हम कांग्रेस को दोषी मानते है लेकिन आज जो हम कर रहे हैं अघोषित आपातकाल है।
दीनदयाल वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी ने प्रदेश सरकार द्वारा लाए जा रहे दण्ड विधियां ‘राजस्थान संशोधन’ विधेयक, 2017 को पूर्णत अलोकतांत्रिक करार दिया। उन्होंने कहा कि यह बिल आपातकाल की याद दिलाने वाला और नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन करने वाला कानून है। यह कानून बेईमान नेताओं और अफसरों को बचाने का कानून है। इसे पास करना और आपातकाल लगाना एक ही बात है।
दूसरी ओर सरकार की ओर से ला जा रहे विधेयक संशोधन और अध्यादेश को चुनौती देते हुए सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता श्रंजना श्रेष्ठ व अधिवक्ता पीसी भंडारी ने अध्यादेश को जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी है। वहीं अधिवक्ता भगवत गौड़ की ओर से याचिका दायर कर अध्यादेश रद्द करने की गुहार लगाई है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने सितम्बर माह में एक अध्यादेश जारी कर दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने और आईपीसी में धारा 228बी जोड़ने का प्रावधान किया है। इसके चलते लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज होने से पहले सरकार से अभियोजन स्वीकृति लेने अनिवार्य कर दिया गया है। स्वीकृति देने की समय सीमा 180 दिन तय है।
इसके अलावा अभी तक राजपत्रित अधिकारी को ही लोक सेवक माना जाता था, लेकिन अध्यादेश में सरकार ने लोक सेवक का दायरा भी बढ़ा दिया है। अभियोजन स्वीकृति से पहले संबंधित लोक सेवक का नाम सार्वजनिक करने पर दो साल की सजा का प्रावधान भी अध्यादेश में किया गया है।
विधानसभा अध्यादेश के अनुरूप संशोधिक विधेयक पारित कर देती है तो राजस्थान में सांसद-विधायक, जज और अफसर के खिलाफ मामला दर्ज करवाना आसान नहीं होगा। इनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाने से पहले सरकार से इजाजत लेनी होगी।
विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस नेता हिरासत में
राजस्थान में दंड विधियां संशोधन विधेयक का मुद्दा गर्मता जा रहा है। सोमवार को विधानसभा के बाहर और अंदर प्रस्तावित विधेयक संशोधन को लेकर विरोध कर रहे कांग्रेस नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया है। हालांकि पुलिस ने उन्हें बस बैठाकर दूसरी जगह छोड़ दिया।
सोमवार को दंड विधियां संशोधन विधेयक को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन देने जा रहे कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने ज्योति नगर तिराहे से हिरासत में ले लिया। प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट सहित कांग्रेस नेताओं को पुलिस ने बस बैठाकर दूसरे स्थान पर छोड़ दिया।
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