अजमेर। सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 803वें उर्स की शुरूआत बुधवार को बुलंद दरवाजे पर झंडा चढऩे के साथ ही प्रांरभ हो गई। इसके साथ ही दरगाह में खिदमत का समय भी आगामी पांच दिनों के लिए बदल गया।
दरगाह में असर की नमाज के बाद सैयद अबरार अहमद की सदारत में भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी परिवार के फकरूद्दीन गौरी ने शानो शौकत के साथ दरगाह के बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया।
इस अवसर पर बड़ी पहाड़ी से तोंपे दागी गई और निजाम गेट पर शादियाने बजाकर उर्स शुरू होने का आगाज किया गया। हालांकि उर्स की विधिवत शुरूआत रकब का चांद दिखाई देने पर 19 या 20 अप्रेल को होगी।
इससे पूर्व दरगाह गेस्ट हाऊस से गौरी परिवार के सदस्यों के नेतृत्व में झंडे का जुलूस निकाला गया। जुलूस के आगे बेंड वादक सुफियाना कलामों की धुन बिखेर रहे थे वहीं शाही कव्वाल कव्वालियों के नजराने पेश कर रहे थे।
झंडे के साथ निकाले जुलूस में भारी संख्या में अकीदतमंदों में झंडे को चूमने की होड़ लगी रही। लंगरखाना गली, निजाम गेट होते हुए जुलूस के दरगाह में प्रवेश करते ही शादियाने बजने आरंभ हो गए।
झंडे को चूमने की अकीदतमंदों की होड़ के कारण वहां काफी अफरा तफरी मच गई जुलूस के दौरान व्यवस्था बनाए रखने में पुलिसकर्मियों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
लगभग दो घंटे से भी अधिक समय तक चले जुलूस के बाद झंडे के बुलंद दरवाजे पर पहुंचते ही गरीब नवाज के गगनभेदी नारों से आसमान गूंज उठा। वहां मौजूद मौसमी अमले ने गौरी परिवार के सदस्यों को झंडा लगाने की मदद की।
इसके बाद फातिया पढ़ी गई और सबके लिए दुआ की गई। उल्लेखनीय है कि 1928 से भीलवाड़ा के पीरों मुर्शीद अब्दुल अतार वाहदशाह झंडे की रस्म अदा करते थे।
बाद में 1944 से लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई और उनके इंतकाल के बाद यह रस्म उनके परिवार के सदस्य निभाते आ रहे हैं। दरगाह में उर्स के दौरान चढ़ाया गया झंडा 1980 में नया बनाया गया था और तभी से यही झंडा हर उर्स पर चढ़ाया जाता है।