लंदन। नये दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ कि वाटरलू की ऐतिहासिक लड़ाई में नेपोलियन बोनापार्ट की हार होने के बाद अमेरिका उसे शरण देने को तैयार था साथ ही उसके अटलांटिक भागने की संभावना को भी टटोला रहा था।
वेलिंगटन के तहत 18 जून 1815 को अंग्रेजों के हमले में ब्रसेल्स के पास नेपोलियन को नेस्तनाबूत करने के बाद स्वदेश भेजे गए पत्रों में पेरिस के लिए अमेरिकी प्रभारी हेनरी जैक्सन ने नेपोलियन के अमेरिका भागने की संभावना की बात की थी।
जैक्सन ने तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स मुनरो को लिखा था कि नेपोलियन को ब्रिटिश अधीनता स्वीकार करनी होगी, जब तक कि वह अपनी सेना पर दोबारा नियंत्रण नहीं पा लेता है या अंग्रेज सरकार अमेरिका के लिए उसे पासपोर्ट जारी करने का फैसला नहीं कर लेती है।
रपट के मुताबिक लड़ाई के 200 वें वर्ष के मौके पर अमेरिकी राष्ट्रीय अभिलेखागार में पाए गए मूल दस्तावेजों की प्रतियां वाशिंगटन में ब्रिटिश दूतावास को सौंपी गई है। दस्तावेजों में यह भी दिखाया गया है कि जैक्सन ने शुरू में गलती से यह अनुमान लगाया था कि नेपोलियन विजेता हो सकता है।
वाटरलू की लड़ाई ने फ्रांस के शासक के रूप में नेपोलियन के शासन को खत्म कर दिया और इसे प्रशा की सेना सहित ब्रिटिश नीत गठबंधन सेना ने जीत के रूप में मनाया।
दस्तावेज पाने वालों में शामिल अमेरिकी विदेश विभाग के इतिहासकार स्टीफन रांडोल्फ ने बताया कि बेचारा जैक्सन नाखुश और बीमार था और अफवाहों तथा गलतफहमी के बीच रह रहा था।
वाटरलू के बाद नेपोलियन पेरिस लौट गया। उसे जब पता चला कि ब्रिटेन और प्रशा लुई 18 वें की ताजपोशी करने के लिए प्रतिबद्ध हैं तब वह फ्रांस के अटलांटिक तट पर नौसेना ठिकाना रोशफोर्ट भाग गया। लेकिन रॉयल नेवी के जहाजों ने सभी बंदरगाहों की नाकेबंदी कर रखी थी और नेपोलियन ने कैप्टन फ्रेडरीक मैटलैंड के समक्ष 15 जुलाई 1815 को आत्मसमर्पण कर दिया।
रपट में कहा गया है कि यदि नेपोलियन नयी दुनिया (अमेरिका) के लिए अटलांटिक पार कर गया होता तो 19वीं सदी के इतिहास ने एक बहुत अलग रूख अख्तियार किया होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नेपोलियन को निर्वासित कर सेंट हेलेना भेज दिया गया जहां 51 साल की उम्र में 1821 को उसकी मौत हो गई।