लखनऊ। इसे उत्तर प्रदेश का अभिशाप कहें अथवा परंपरा लेकिन यह सत्य है कि यहां के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आजादी से लेकर अब तक कोई भी लगातार दोबारा नहीं बैठ सका।
गोविंद वल्लभ पंत से लेकर अब तक 20 लोग 30 बार मुख्यमंत्री बने लेकिन चुनाव के बाद कोई भी दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेने में सफल नहीं हो पाया। वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस परंपरा को तोड़ते हुए दोबारा शपथ लेने को लेकर बड़े आश्वस्त थे, लेकिन शनिवार को जैसे ही सत्रहवीं विधानसभा के चुनावी नतीजे आने शुरु हुए उत्तर प्रदेश का यह अभिशाप पुनः जीवंत हो उठा और अखिलेश सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा।
गौरतलब है कि आजादी के बाद संयुक्त प्रान्त उत्तर प्रदेश नाम से जाना जाने लगा। 26 जनवरी 1950 को संयुक्त प्रान्त के प्रधान पं0 गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। अब तक प्रदेश में 30 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
हालांकि मुख्यमंत्रियों की कुल संख्या बीस ही रही क्योंकि डा0 सम्पूर्णानंद, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे कई लोग एक से अधिक बार मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उप्र में दस बार राष्ट्रपति शासन भी लगा। तीन लोग राज्य के कार्यकारी मुख्यमंत्री रहे जिनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। प्रदेश में पहली विधानसभा 1952 से 1957 तक रही।
इस दौरान पं0 गोविंद वल्लभ पंत मुख्यमंत्री रहे। दूसरी विधानसभा का कार्यकाल 1957 से 1962 तक रहा और इसमें सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री बने। इसके बाद चंद्रभानु गुप्ता, सुचेता कृपलानी, चंद्रभानु गुप्ता, चैधरी चरण सिंह, चंद्रभानु गुप्ता, चैधरी चरण सिंह, त्रिभुवन नारायण सिंह, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, राम नरेश यादव, बनारसी दास, विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्रीपति मिश्र, नारायणदत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह, नारायणदत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव, मायावती, राष्ट्रपति शासन, मायावती, कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्त, राजनाथ सिंह, मायावती, मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद संभाला लेकिन कोई दोबारा इस कुर्सी पर नहीं बैठ सका। वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 15 मार्च 2012 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
उप्र विधानसभा का कार्यकाल कुल 05 वर्ष का होता है यदि वह इसके पूर्व विघटित न हो गई हो। प्रथम विधानसभा का गठन 8 मार्च, 1952 को हुआ था। तब से इसका गठन सोलह बार हो चुका है। सोलहवीं विधान सभा का गठन 8 मार्च, 2012 को हुआ। इस दौरान चैथी, छठी, सातवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं विधानसभा समय से पहले ही विघटित हो गयीं। परिणामस्वरुप प्रदेश में सात बार मध्यावधि चुनाव कराने पड़े थे।