
देहरादून। उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष अजय सेतिया ने केदारनाथ आपदा संबंधित रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री द्वारा कार्रवाई न करने का आरोप लगाया।
सेतिया कहा कि आयोग द्वारा केदारनाथ आपदा का अध्ययन करने के बाद बच्चों को लेकर रिपोर्ट सरकार को दी थी, उस पर कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने एक्शन टेकन रिपोर्ट कभी भी विधान सभा के पटल पर नहीं रखी और मामले को दबा दिया।
मंगलवार को जारी बयान में अजय सेतिया ने कहा कि भाजपा सरकार ने 2011 में उत्तराखंड को एक बेहतरीन बाल अधिकार संरक्षण आयोग दिया था। आयोग के बेहतरीन नियम बनाए थे। आयोग ने मेरे नेतृत्व में ऐसे मानक तय किए, जिन्हें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी अपनाया।
केदारनाथ की आपदा के बाद जब कांग्रेस सरकार सारे तथ्य देश और प्रदेश की जनता से छुपा रही थी, तब मेरे नेतृत्व में बाल आयोग ने आपदा में प्रभावित बच्चो की रिपोर्ट विधानसभा में पेश करवा कर सनसनी फैला दी थी। सारा भंडा फूटने पर सरकार के हाथ पांव फूल गए थे।
कानून के मुताबिक हरीश रावत सरकार उस रिपोर्ट पर एटीआर रखने के लिए बाध्यकारी थी। लेकिन हरीश रावत सरकार ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए तीन साल के पूरे कार्यकाल में आपदा में प्रभावित बच्चों पर विधानसभा में पेश की गई आयोग की रिपोर्ट पर एटीआर पेश नहीं की।
एटीआर तो वह तब रखते अगर उन्होंने उस रिपोर्ट को आधार बना कर राज्य के बच्चों के हित में कोई काम किया होता। उल्टे आयोग से मेरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद हरीश रावत की कांग्रेस सरकार ने आयोग के पर कुतर दिए।
सेतिया ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने राज्य के बाल आयोग को कमजोर किया, जो कि पूरे देश के लिए आदर्श आयोग के तौर पर स्थापित हो रहा था। कांग्रेस ने आयोग के सभी छह सदस्य ऐसे नियुक्त किए, जिन्हें बाल अधिकारों और उसकी पृष्ठभूमि की कोई जानकारी नहीं थी।
सभी सदस्य कानून की अवहेलना कर के बनाए गए। जबकि कानून में स्पष्ट वर्णित है कि सभी छह सदस्य बच्चों से जुड़े विभिन्न छह विषयों के एक्सपर्ट होने चाहिए, लेकिन कांग्रेस सरकार की ओर से नियुक्त एक भी सदस्य कानून में उल्लेखित योग्यता को पूरा नहीं करता था।
बाद में उन्होंने जो अध्यक्ष नियुक्त किया उन्हें न तो बाल अधिकारों की समझ थी न दिलचस्पी, नतीजतन आयोग ब्यूरोक्रेसी के हाथ का खिलौना बन गया और तीन साल की उपलब्धियां भी भुला दी गई।
केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को राज्य के बाल मजदूरों और स्कूल न जाने वाले बच्चों का सर्वेक्षण करने के लिए धन मुहैया करवाने की पेशकश की थी, इसके बावजूद राज्य सरकार ने सर्वेक्षण नहीं करवाया क्योंकि राज्य सरकार उत्तराखंड के गरीब बच्चों का उज्ज्वल भविष्य नहीं चाहती थी।
इसीलिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने उतराखंड के बच्चों के उज्ज्वल भविष्य, उनकी सुरक्षा, संरक्षण के लिए भाजपा सरकार की ओर से बनाए गए आयोग को बर्बाद कर के उस की बागडोर ऐसे अधिकारियों के हवाले कर दी जिनकी इसमें कोई रुचि नहीं थी।