उत्तराखंड में लगभग तीन महीने से लगातार चल रही सियासी उठापटक व कानूनी दांव-पेंच के बाद सुप्रीम कोर्ट के प्रभावी हस्तक्षेप के पश्चात आखिरकार 10 मई को राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण हुआ, जिसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेता व राज्य के अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका मिला।
इससे पहले हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष के उस फैसले पर भी अपनी सहमति की मुहर लगा दी थी जिसके तहत विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस से बगावत करने वाले 9 विधायकों की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी थी।
ऐसे में 10 मई को हुए विधानसभा में शक्ति परीक्षण में संभवत: हरीश रावत को अपना बहुमत साबित करने में कोई दिक्कत नहीं हुई तथा सूत्रों के अनुसार रावत ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर लिया है। जिसमें विपक्ष में 28 व हरीश रावत के पक्ष में 34 मत पडऩे की बात कही जा रही है। हालांकि शक्ति परीक्षण का अधिकृत नतीजा सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित किया जाएगा।
अब राज्य विधानसभा में अगर रावत ने बहुमत साबित कर लिया है तो यह उम्मीद जताई जा सकती है कि उत्तराखंड राज्य में अब राजनीतिक अनिश्चितता व अस्थिरता का दौर खत्म होगा तथा सियासी शह-मात व तिकड़म के खेल में क्षीण हो रहीं राज्य की सकारात्मक संभावनाएं फिर राज्य के उत्थान एवं कल्याण का आधार बनेंगी।
लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना बेहद जरूरी है क्यों कि विपक्ष सही मायने में सत्ता पक्ष के श्रेष्ठ सचेतक की भूमिका निभाता है, जिसके सजग, संवेदनशील एवं आक्रामक रवैये से सत्ता पक्ष को न सिर्फ निरंकुश होने से रोका जाता है बल्कि इससे संविधान सम्मत सरकार की अवधारणा भी पूरी होती है।
इसके अलावा विपक्ष को इस बात का भी पूरा अधिकार होता है कि वह सत्तापक्ष के लिए सदन के अंदर खतरे की घंटी भी बजा सकता है अथात् सरकार को अस्थिर करने के विपक्ष के प्रयास और परिकल्पना भी लोकतंत्र में वर्जित नहीं है।
लेकिन पिछले लगभग 3 माह में उत्तराखंड में जो कुछ भी घटित होता गया उसे हर दृष्टि से गलत व वर्जित माना जाएगा। पहले विधायकों को बगावत के लिये उकसाना फिर कतिपय राजनेताओं द्वारा राजनीतिक शह-मात के खेल के तहत सत्ता की घुड़दौड़ को बढ़ावा दिया गया।
विधायक कभी देहरादून तो कभी दिल्ली के चक्कर लगाते रहे तथा उनकी भी यह कोशिश रही कि वह राज्य की सियासत की इस डांवाडोल स्थिति का फायदा उठाकर अधिकाधिक सौदेबाजी कर सकें। इस सौदेबाजी की हसरत ने कुछ विधायकों की विधानसभा सदस्यता ही खत्म करा दी।
नेता चाहे सत्तापक्ष के हों विपक्ष के सबको अपनी दलीय प्रतिबद्धता, राजनीतिक अनुशासन व संवैधानिक मूल्यों की प्रतिष्ठा का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए था लेकिन लोकतंत्र का गला घोटने में लगभग सबने अपनी ताकत लगाई।
नैनीताल हाईकोर्ट को तो राष्ट्रपति के बारे में भी तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी। कुछ आरोप हरीश रावत पर भी लगे, जिसके तहत उनका स्टिंग आपरेशन उजागर हुआ तो उनकी तरफ से भी यह आरोप लगाया गया कि भारतीय जनता पार्र्टी द्वारा उनके विधायकों को पद व पैसे का लालच दिया जा रहा है।
राज्य के कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी कांग्रेस की जड़ें खोदने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी तथा राज्य के नौ कांग्रेस विधायकों की बगावत विजय बहुगुणा व हरक सिंह रावत के मिले-जुले प्रयासों का ही नतीजा थी, लेकिन अब अगर हरीश रावत ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया है तो विजय बहुगुणा व हरक सिंह रावत जैसे नेताओं की उम्मीद पर पानी फिरना स्वाभाविक है।
साथ ही राज्य के लोग सवाल भारतीय जनता पार्टी पर भी उठाएंगे जिसके नेताओं ने राज्य सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर देने तथा निर्धारित समय पर विधानसभा चुनाव में ही सत्ता का जनादेश हासिल करने के बजाय लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार की राजनीतिक हत्या में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
बहरहाल राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण के बाद उत्तरखंड सफलता और विकास के मार्ग पर फिर आगे बढ़ेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं