

नई दिल्ली। नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में लगे राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई के दौरान बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं, वह गलत भी हो सकते हैं। ऐसे में राष्ट्रपति के फैसले की भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
इस प्रकरण की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ और न्यायाधीश वीके बिष्ट की खण्डपीठ ने केन्द्र के वकील से पूछा कि किस तरह से सिद्ध करोगे कि मनी बिल गिर चुका था। एडीशनल साॅलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति ने पूरी तरह से सोच समझ कर उत्तराखण्ड में धारा 356 लगाई है।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार से कहा कि हम राष्ट्रपति के बुद्धिमत्ता पर शक नहीं कर रहे लेकिन सब कुछ न्यायिक समीक्षा के अधीन है। यह मामला कोई राजा के फैसले की तरह नहीं है कि जिसकी न्यायिक विवेचना नहीं न की जा और यही संविधान का सार है। उन्होने कहा कि राष्ट्रपति ही नहीं, जज भी गलती कर सकते हैं। उन्होंने केन्द्र सरकार को कहा आपको हमारे फैसले पर खुशी माननी चाहिए।
इधर, केंद्र सरकार ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अदालत राष्ट्रपति के फैसले में दखलअंदाजी नहीं कर सकती। इससे पहले उच्च न्यायालय ने असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल पूछा कि आपके गोपनीय कागजों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट द्वारा राज्यपाल को लिखे खत में कहा गया था कि 27 विधायकों ने फ्लोर टेस्ट की मांग की थी जबकि 9 बागी विधायकों का नाम उसमें नहीं था।
इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा की 18 मार्च 2016 की रात 11ः30 बजे अजय भट्ट ने 35 विधायकों के साथ राजभवन में राज्यपाल को पत्र देकर वित्त विधेयक गिरने का हवाला देकर हालातों से अवगत कराया था। विधेयक गिरने के बावजूद स्पीकर द्वारा विधेयक को पास बताकर संविधान का मजाक उडाया गया था। खण्डपीठ ने इस पर सवाल किया कि कैसे सिद्ध करोगे कि मनी बिल गिर चुका था।
खण्डपीठ ने राज्यपाल की ओर से केन्द्र को भेजे गए पत्र में हरकसिंह रावत को 18 मार्च के बाद केबीनेट से हटाने व एडवोकेट यूके उनियाल को बाहर करने के औचित्य पर भी सवाल किया। इस पर मेहता ने कहा कि सरकार 18 को बहुमत खो चुकी थी। उसे इस तरह की कार्रवाई का अधिकार नहीं था।
हरीश रावत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जवाब में कहा कि 18 को मनी बिल गिरने का दावा गलत है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के सचिव के मत विभाजन के पत्र का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि 18 मार्च को सिर्फ 27 विधायकों ने ही हस्ताक्षर किए हैं। भाजपा के विधायकों को स्पीकर को लिखा यही एकमात्र पत्र था, इस पर कांग्रेस के 9 बागी विधायकों के हस्ताक्षर नहीं थे। इधर, बर्खास्त विधायकों के वकील दिनेश द्विवेदी ने मीडिया से कहा कि 9 बागी आज भी कांग्रेस के साथ है।