नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव और बाद के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा जोरों पर है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सेानिया गांधी के स्थान पर अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा था। इससे पार्टी के बुजर्ग नेता खासे परेशान थे।
लेकिन राहुल की छुट्टी के बीच कांग्रेस अध्यक्ष ने सरकार के खिलाफ जिस प्रकार से मोर्चा खोला है उससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में एक बार फिर आशा जगी है।
ऐसा माना जा रहा था कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कई बजुर्ग नेताओं की छुट्टी तय थी। कांग्रेस का एक धडा का यह मानना है कि राहुल गांधी को अभी पार्टी अध्यक्ष बनाने से लाभ नहीं होगा। कांग्रेस सूत्रों की माने तो सोनिया गांधी ही मोदी का सामना करने में समक्ष है। उन्हें ही अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहिए।
सेानिया गांधी ने भी सरकार के खिलाफ काफी सक्रियता दिखाई है। जिससे निराश हो चुकी कांग्रेस में एक नई उर्जा देखने को मिली है। कांग्रेस नेता भी मान रहें हैं कि चाहे पार्टी हो या फिर विपक्ष सोनिया गांधी की बात की सूनी जाती है। ऐसा देखने को भी मिला है।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ 14 दलों का नेतृत्व कर सोनिया गांधी ने साबित कर दिया कि हार के बाद भी उनकी महत्व बरकरार है। सोनिया गांधी की इस सक्रियाता का ही नतीजा है कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर सरकार बैकफूट पर है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इन दिनों संसद के अंदर और बाहर बेहद सक्रिय नजर आ रही हैं। भूमि अध्यादेश की खिलाफत हो या पूर्व प्रधानमंत्री ‘मनमोहन सिंह का कोयला घोटाले ‘में नाम आना।
कांग्रेस अध्यक्ष ने दोनों ही मामलों में अपनी आवाज बुलंद कर सरकार को विपक्ष की ताकत दिखा रही हैं। लेकिन सोनिया गांधी की यह सक्रियता कांग्रेस उपाध्यक्ष और उनके पुत्र राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की राह कठिन करती नजर आ रही है।
सूत्रों के अनुसार सोनिया के करीबी नेताओं ने उन्हें सलाह दी है कि फिलहाल अध्यक्ष पद अपने पास ही रखें और आगे बढकर कांग्रेस की दशा और दिशा तय करें। दरअसल भूमि अध्यादेश के खिलाफ मार्च में शामिल हुए कई वरिष्ठ नेताओं ने दबी जुबान में कहा कि राहुल का कद इतना बडा नहीं है कि वे विपक्ष के नेताओं को अपने साथ ला सकें।
खुद विपक्ष के नेताओं ने भी माना कि यदि राहुल इस मार्च की अगुवाई करते तो इतनी बडी संख्या में विपक्ष के नेताओं का जुड पाना असंभव था। ऐसे में इस बात की संभावनाएं बढ जाती हैं कि बीमारी के बावजूद भी सोनिया अध्यक्ष पद को फिलहाल अपने पास रखेंगी।
उधर कांग्रेस उपाध्यक्ष पार्टी के दुदर्शा पर मंथन करने के लिए छुट्टी लिए है। लेकिन जब भी उनकी चर्चा होती है उनकी छवि से साथ पार्टी की छवि का भी नुकसान होता है।राहुल गांधी के विपरीत सोनिया गांधी ने अब ज्यादा आक्रमक रूख अपना रही है। वह अब सीधा प्रधनमंत्री मोदी पर हमला बोल रही है।
मोदी के खिलाफ बोलते हुए सोनिया, मोदी सरकार या मोदी की भाजपा सरकार जैसे जुमलों का इस्तेमाल कर रही हैं। सोनिया की यह नीति मोदी को तो नुकसान पहुंचा ही रही हैं इससे उनके पुत्र के राजनीतिक भविष्य और राहुल समर्थक नेताओं का कद भी छोटा होता जा रहा है।
इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने अपने कुछ खास सांसदों को एसएमएस भेजकर राज्यसभा में खनन बिल का विरोध करने के लिए कहा था, किन्तु बिल पर मतदान के समय कांग्रेस के कई सांसद सदन से गायब रहे और बिल पास हो गया।
कांग्रेस ने सदन से गायब रहने वाले दस सांसदों से इस मामले पर स्पष्टीकरण भी मांगा है। कांग्रेस के एक सांसद ने इस एसएमएस को मीडिया के साथ साझा किया।