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विहिप नेता अशोक सिंघल का निधन, पीएम ने जताया शोक - Sabguru News
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विहिप नेता अशोक सिंघल का निधन, पीएम ने जताया शोक

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विहिप नेता अशोक सिंघल का निधन, पीएम ने जताया शोक
VHP leader ashok singhal passed away at medanta hospital in gurgaon
VHP leader ashok singhal passed away at  medanta hospital in gurgaon
VHP leader ashok singhal passed away at medanta hospital in gurgaon

नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक अशोक सिंघल का मंगलवार दोपहर  2:24 बजे गुडग़ांव के मेदांता अस्पताल में उपचार के दौरान निधन हो गया। वे 89 साल के थे तथा लंबे समय से सांस संबंधित बीमारी से ग्रसित थे। तबीयत बिगडऩे के बाद उन्हें बीते शुक्रवार को देर रात अस्पताल लाया गया था।

रविवार को उनके स्वास्थ्य में कुछ सुधार नजर आया। उन्होंने अपनी आंख खोली और कुछ लोगों से मुलाकात भी की। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्ढा, प्रवीण भाई तोगडिया, समेत कई नेताओं ने इस बीच अस्पताल जाकर उनके स्वास्थ्य की जानकारी भी ली।
सिंघल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर दुख प्रकट किया है। उन्होंने सिंघल के निधन को व्यक्तिगत हानि बताया।

हिन्दुत्व के लिए पूरा जीवन समर्पित

९० के शक में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन जब अपने यौवन पर था, उन दिनों जिनकी सिंह गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, उन अशोक सिंहल को संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी पर वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे।

अशोक सिंघल का जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितम्बर, 1926) को उत्तर प्रदेश के आगरा नगर में हुआ था। उनके पिता महावीर सिंहल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया।

उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ।

1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक सिंघल की माताजी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनाई। इससे माताजी ने अशोक सिंघल को शाखा जाने की अनुमति दे दी।

1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा? अशोक सिंघल भी उन देशभक्त युवकों में थे। अत: उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया।

बचपन से ही अशोक सिंघल की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनाई है। 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा तो अशोक सिंघल सत्याग्रह कर जेल गए। वहां से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गए। अशोक सिंघल की सरसंघचालक श्रीगुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही।

प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहां उनका सम्पर्क  रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक सिंघल अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टत: स्वीकार करते हैं।

1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोक सिंघल इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाए गए। 1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ पर उसके पीछे शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी। उसके बाद अशोक सिंघल को विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लगा दिया गया।

इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा आदि अनेक नए आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गांव-गांव तक पहुंच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी।

भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज वि.हि.प. की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक सिंघल का योगदान सर्वाधिक है। अशोक सिंघल परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गए थे।

परिषद के महासचिव  चम्पत राय जी भी उनके साथ थे। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुडग़ांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ।