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Vijay Mallya's old company says he diverted Rs 1225 crore
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विजय माल्या की एक और धांधली हुई उजागर

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विजय माल्या की एक और धांधली हुई उजागर
Vijay Mallya's old company says he diverted Rs 1225 crore
Vijay Mallya's old company says he diverted Rs 1225 crore
Vijay Mallya’s old company says he diverted Rs 1225 crore

शराब कारोबारी विजय माल्या के कारनामें को लेकर एक और खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि डियाजियो के स्वामित्व वाली यूनाइटेड स्प्रिट्स (यूएसएल) द्वारा अपनी जांच में 1225.3 करोड़ रुपए की हेराफेरी और अनुचित लेनदेन का पता लगाया गया है।

इस घोटाले में किंगफिशर एयरलाइंस और फॉर्मूला वन टीम सहित माल्या से संबंधित कंपनियों के शामिल होने की बात कही जा रही है। माल्या को लेकर आए दिन नए खुलासे होते ही रहते हैं तो माल्या हैं कि उन्हें देश के कानून के वजूद की परवाह ही नहीं है तथा वह हर स्थिति की अपने हितों व सुविधा की दृष्टि से व्याख्या करना चाहते हैं।

पता चला है कि अपने खिलाफ लंबित मामलों में माल्या वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये जांच में शामिल होने के लिये तैयार हो गये हैं। माल्या सरकारी बैंकों का हजारों करोड़ रुपए लेकर विदेश भाग गए तथा संबंधित बैंकों के अधिकारी, जांच एजेंसियां तथा सरकार सोते रह गए तथा अब माल्या द्वारा देश में वापस आकर कानून का सामना करने के बजाय जांच-पड़ताल में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल होने की बात कही जा रही है।

यह तो देश के कानून का उपहास उड़ाने जैसा कृत्य है तथा इससे देश के कानून एवं कानून के क्रियान्यवनकर्ताओं की लाचारी की भी पुष्टि होती है। क्यों कि देश से लंदन पलायन करने के बाद माल्या वहां ऐशोआराम की जिंदगी गुजार रहे हैं तथा वहां उनके विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने का दौर भी लगातार जारी है तो फिर सरकार व जांच एजेंसियों के सामने ऐसी कौन सी विवशता है कि वह माल्या को वापस स्वदेश लौटने के लिए बाध्य नहीं कर सकते?

माल्या द्वारा पहले तो देश के कानून को ही सीधे तौर पर चुनौती दी गई फिर माल्या के मुद्दे को प्रभावी एवं आक्रामक ढंग से जगजाहिर करने वाले मीडिया जगत के बारे में भी माल्या द्वारा तमाम तरह के आरोप लगाए गए। लेकिन इसके बावजूद माल्या के मुद्दे पर आक्रोश जब राष्ट्रव्यापी हो गया तो सरकार व कानून के झंडबरदारों की आंख खुली व माल्या के खिलाफ वांछित कार्रवाई की कुछ हलचल दिखाई पडऩे लगी लेकिन माल्या के मुद्दे पर अब तक जो नतीजे सामने आए हैं वह तो निराशाजनक ही हैं।

सरकार द्वारा कई अनावश्यक मुद्दों पर आवश्यकता से ज्यादा जल्दबाजी दिखाई जाती है तथा संबंधित मामले को हैरतंगेज व सनसनीखेज बनाने की कोशिश भी की जाती है लेकिन माल्या के मुद्दे पर सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता तमाम जनभावनाओं पर क्यों भारी पड़ रही है, इसबात पर तो विचार किया ही जाना चाहिए।

अब जैसा कि बताया जा रहा है कि 2013 में ब्रिटेन की शराब कंपनी डियाजियो द्वारा माल्या के यूबी ग्रुप से यूएसएल को खरीदा गया था। यह सौदा कई अरब डॉलर में होने की बात कही जा रही है। यूएसएल द्वारा दावा किया जा रहा है कि इसकी देनदारी विजय माल्या पर ही बनती है।

यूएसएल द्वारा यह भी दावा किया गया है कि अतिरिक्त जांच में प्रथम दृष्ट्या और फंडों के इधर-उधर किए जाने का खुलाया हुआ है, यह राशि लगभग 1225.3 करोड़ रुपए बताई जा रही है। जांच में अक्टूबर, 2010 से जुलाई, 2014 तक के लेनदेन को शामिल किया गया है।

आशय स्पष्ट है कि माल्या वर्षों तक अनुकूल परिस्थितियों, संभावनाओं, संपर्कों तथा संबंधों का लाभ उठाकर अपनी व्यावसायिक जागीर खड़ी करते रहे और सबको चूना लगाते रहे।

उनके व्यावसायिक हितों के पूरा होने में अड़चन बनने की संभावना वाले लोगों को उनके द्वारा आर्थिक तौर पर उपकृत भी किया जाता रहा। ताकि कोई कानूनी या प्रक्रियात्मक जटिलता उनकी राह में रोड़ा न बनने पाए तथा उनका तरीका एवं उद्देश्य भले ही शत-प्रतिशत गलत हो लेकिन उनका काम रुकने नहीं पाए।

अब यह माल्या के प्रभाव का ही नतीजा है कि उनके खिलाफ जो भी जांच-पड़ताल या कार्रवाई चल रही है कि उसकी मंद रफ्तार देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बहुत जल्द कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आएगा।

जांच-पड़ताल यूं ही चलती रहेगी तथा अंत में संपूर्ण जांच एवं दंडात्मक प्रक्रिया को फाइलों में ही दफन कर दिया जायेगा। देश में कानून के प्रति आए दिन उभरने वाले जन असंतोष का एक बड़ा कारण यह भी है कि कानून के क्रियान्वयन के मामले में सरकारी तंत्र का मापदंड ही दोहरा है।

एक तरफ तो निरीहों-मजलूमों पर कानून को कहर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है लेकिन वहीं दूसरी ओर माल्या जैसे ताकतवर व प्रभावशाली लोग हैं जिनका कड़ा से कड़ा कानून भी बाल तक बांका नहीं कर पाता।

सुधांशु द्विवेदी