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govt violate rule in constitution of moinitoring committee!
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माउण्ट आबू की मॉनीटरिंग कमेटी गठन में नियमों की अनदेखी!

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माउण्ट आबू की मॉनीटरिंग कमेटी गठन में नियमों की अनदेखी!

NakkiLake
सबगुरु न्यूज-सिरोही/माउण्ट आबू। माउण्ट आबू में ईको सेंसेटिव जोन के तहत गठित की गई मॉनीटरिंग कमेटी की वैधानिकता पर भी खतरा मंडरा रहा है। ग्रीन ट्रिब्यूनल में माउण्ट आबू में जोनल मास्टर प्लान के तहत तीस सौ बीघा ग्रीन बैल्ट को कन्वर्ट किए जाने के मामले में दायर वाद में सरकार की ओर से जवाद दाखिल किया गया था कि मॉनीटरिंग कमेटी को गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार किया गया है।

इस पर परिवादियों को मॉनीटरिंग कमेटी की खामी बताने का मौका ट्रिब्यूनल में मिल गया और उन्होंने ईको सेंसेटिव जोन के नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए मॉनीटरिंग कमेटी के गठन में नियमों की अनदेखी किए जाने की दलील ट्रिब्यूनल को दे दी।
-पर्यावरण विद् होना चाहिए अध्यक्ष
एनजीटी में दायर वाद में परिवादियों ने बताया कि नोटिफिकेशन के अनुसार माउण्ट आबू की मॉनीटरिंग कमेटी का अध्यक्ष पर्यावरणविद् को होना चाहिए था, लेकिन माउण्ट आबू मॉनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष डिवीजनल कमिश्नर को बनाया गया है। वह एक ब्यूरोक्रेट हैं।

जिनका पर्यावरण में काम किए जाने का कोई अनुभव नहीं होता। मूल मॉनीटरिंग कमेटी में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पर्यावरण के जानकार अधिकारी का अध्यक्ष बनाया गया था। इसी तरह से यदि उन्हें अपने अधिकार हस्तांतरित किए जाने भी थे तो राज्य वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के वन सेवा के अधिकारी या पर्यावरणविद् को इसकी जिम्मेदारी दी गई होती।

इन्होंने बताया कि समिति के सदस्य भी पर्यावरण एक्टिविस्ट या पर्यावरणविद होने चाहिए थे, लेकिन इस समिति में सदस्य राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों को बनाया गया है। जोनल मास्टर प्लान में ग्रीन बैल्ट को परिवर्तित करने और मॉनीटरिंग कमेटी के गठन करने में सुप्रीम कोर्ट की मंशा का खयाल नहीं रखा गया है।
-इनका कहना है….
हमने मॉनीटरिंग कमेटी पर सीधे आक्षेप नहीं लगाए। हमारा मूल वाद ग्रीन बेल्ट कन्वर्जन को लेकर था। सरकार ने जब मॉनीटरिंग कमेटी को नियमानुसार बताया तो ट्रिब्यूनल में हमने इस पर आपत्ति जताई थी। इस पर सुनवाई होनी बाकी।
डॉ एके शर्मा, परीवादी।